प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम् ।। 47 ।।
शब्दार्थ :- प्रयत्न ( सभी शारीरिक गतिविधियों या सभी प्रकार की शारीरिक कोशिशों को ) शैथिल्य ( शिथिल कर देना या रोक देना ) अनन्त ( जिसका कभी अन्त नहीं होता अर्थात ईश्वर या परमात्मा में ) समापत्तिभ्याम् ( पूरा ध्यान लगाने से आसन में सिद्धि मिलती है । )
सूत्रार्थ :- सभी प्रकार के शारीरिक क्रियाकलापों को रोक देने से और उस अनन्त परमात्मा में ध्यान लगाने से साधक का आसन सिद्ध होता है । अर्थात उसे आसन में सफलता प्राप्त होती है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में आसन की सिद्धि के उपायों का वर्णन किया गया है ।
आसन में सिद्धि अर्थात सफलता प्राप्त करने के लिए साधक को आसन का अभ्यास करते हुए अपनी समस्त शारीरिक गतिविधियों को रोक देना चाहिए । शरीर को बिना हिलाएं- डुलाएं एक ही अवस्था में स्थिर कर देना चाहिए । साथ ही इस अवस्था में हमारा शरीर सुखपूर्वक होना चाहिए । किसी भी प्रकार का कोई तनाव, खिंचाव या कम्पन नहीं होना चाहिए । शरीर एकदम से स्थिर और सुखमय अवस्था में होना चाहिए । शरीर के स्थिर होने से मन भी स्थिर हो जाता है । जिससे एकाग्रता बढ़ती है ।
यह तो हुई शरीर की अवस्था । इसके बाद जब शरीर एकदम से स्थिर और सुखमय अवस्था में आ जाए, तब उस अनन्त व सर्वशक्तिमान परमात्मा में अपना ध्यान लगाना चाहिए ।
इस प्रकार से जब कोई साधक आसन के नियम को मानता है, तो उसे आसनों में सफलता अर्थात सिद्धि प्राप्त होती है ।
अतः आसन की सिद्धि के लिए पूरी तरह से स्थिरता व एकाग्रता की आवश्यकता होती है । तभी हमारा आसन सिद्ध होता है ।
अतः आसन की सिद्धि के लिए हमें अपने शरीर की सभी चेष्टाओं ( क्रियाकलापों ) को रोक देना चाहिए । जैसे ही हम शरीर की सभी चेष्टाओं को रोकते हैं वैसे ही हमारे शरीर की कम्पन खत्म हो जाती है । फिर अपने चित्त को उस अनन्त परमात्मा में लगाने से हमारा आसन सिद्ध हो जाता है ।
आसन में सिद्धि प्राप्त होने पर हमें क्या फल प्राप्त होता है । इसकी व्याख्या अगले सूत्र में की गई है ।
Thanku so much sir??
?प्रणाम आचार्य जी! ओ3म् सुन्दर गुरु वचन!ओ3म् राम! धन्यवाद गुरु जी! ???
ॐ गुरुदेव*
अति सुंदर व्याख्या ।
आपको हृदय से आभार।
Pranaam Sir! ??Aasan ki bahut sundar vyakhaya
All condition will avoided and mind will be set only god (supreme power) asana,s siddi to get guru ji.