घेरण्ड संहिता
घेरण्ड संहिता योग हठयोग साधना की अनुपम रचना है । इसके रचयिता महर्षि घेरण्ड हैं । जहाँ कहीं भी योग विद्या की चर्चा होती हैं वहीं पर घेरण्ड संहिता का वर्णन अवश्य होता है । हम सभी घेरण्ड संहिता की उपयोगिता का भी अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि योग का कोई भी विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है, जहाँ पर इसको न पढ़ाया जाता हो । या योग के जितने भी पाठ्यक्रम चलाएं जा रहे हैं जैसे – सर्टिफिकेट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स, ग्रेजुएशन कोर्स व पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स आदि । इन सभी में घेरण्ड संहिता को प्रमुख ग्रन्थ के तौर पर पढ़ाया जाता है । साथ ही योग नेट व व्यवसायिक योग परीक्षा ( क्यू० सी० आई ० ) आदि में भी इससे सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं ।
घेरण्ड संहिता का काल / समय :-
घेरण्ड संहिता के काल के विषय में भी बहुत सारे विद्वानों के अलग – अलग मत हैं । उन सभी मतों के बीच इसका काल 17 वीं शताब्दी के आसपास का माना जाता है ।
घेरण्ड संहिता के योग का उद्देश्य :-
महर्षि घेरण्ड अपनी योग विद्या का उपदेश तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति के लिए करते हैं । इसमें योग को सबसे बड़ा बल बताया है । साधक इस योगबल से ही उस तत्त्वज्ञान की प्राप्ति करता है ।
घेरण्ड संहिता में योग का स्वरूप :-
घेरण्ड संहिता में योग को सबसे बड़ा बल मानते हुए तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए इसका उपदेश दिया गया है । इसके योग को घटस्थ योग के नाम से भी जाना जाता है । इसके सात (7) अध्यायों में योग के सात ही अंगों की चर्चा की गई है । जो इस प्रकार हैं –
- षट्कर्म
- आसन
- मुद्रा
- प्रत्याहार
- प्राणायाम
- ध्यान
- समाधि ।
अब हम सभी अध्यायों का संक्षिप्त वर्णन करेंगें ।
प्रथम अध्याय :- घेरण्ड संहिता में सबसे पहले महर्षि घेरण्ड व चण्डकपालि राजा के बीच में संवाद ( बातचीत ) को दिखाया गया है । राजा चण्डकपालि महर्षि घेरण्ड को प्रणाम करते हुए तत्त्वज्ञान को प्राप्त करवाने वाली योग विद्या को जानने की इच्छा व्यक्त करते हैं । तब महर्षि घेरण्ड ने उनकी विनती को स्वीकार करके उनको योग विद्या का ज्ञान देना प्रारम्भ किया ।
घटस्थ योग :-
मनुष्य के शरीर को कच्चा घट अर्थात घड़ा मानते हुए उस कच्चे घड़े रूपी शरीर को योग रूपी अग्नि द्वारा परिपक्व ( मजबूत ) बनाने के लिए योग के सात साधनों का उपदेश दिया है ।
सप्त योग का लाभ :-
योग के सप्त साधनों का वर्णन करते हुए उनके लाभों की चर्चा भी इसी अध्याय में की गई है । योग के सभी अंगों के लाभ इस प्रकार हैं –
- षट्कर्म = शोधन
- आसन = दृढ़ता
- मुद्रा = स्थिरता
- प्रत्याहार = धैर्य
- प्राणायाम = लघुता / हल्कापन
- ध्यान = प्रत्यक्षीकरण / साक्षात्कार
- समाधि = निर्लिप्तता / अनासक्त अवस्था
षट्कर्म वर्णन :-
वैसे तो षट्कर्म मुख्य रूप से छः होते हैं । लेकिन आगे उनके अलग – अलग विभाग भी किये गए हैं । जिनका वर्णन इस प्रकार है –
- धौति :- धौति के मुख्य चार भाग माने गए हैं । और आगे उनके भागों के भी विभाग किये जाने से उनकी कुल संख्या 13 हो जाती है ।
धौति के चार प्रकार :-
- अन्तर्धौति
- दन्त धौति
- हृद्धधौति
- मूलशोधन ।
- अन्तर्धौति के प्रकार :-
- वातसार धौति
- वारिसार धौति
- अग्निसार धौति
- बहिष्कृत धौति ।
- दन्तधौति के प्रकार :-
- दन्तमूल धौति
- जिह्वाशोधन धौति
3 / 4 . कर्णरन्ध्र धौति ( दोनों कानों से )
- कपालरन्ध्र धौति ।
- हृद्धधौति के प्रकार :-
- दण्ड धौति
- वमन धौति
- वस्त्र धौति ।
- मूलशोधन :- मूलशोधन धौति के अन्य कोई भाग नहीं किए गए हैं ।
- बस्ति :- बस्ति के दो प्रकार होते हैं –
जल बस्ति
स्थल बस्ति ।
- नेति :- नेति क्रिया के दो भाग किये गए हैं –
- जलनेति
- सूत्रनेति ।
- लौलिकी :- लौलिकी अर्थात नौलि क्रिया के तीन भाग माने जाते हैं –
- मध्य नौलि
- वाम नौलि
- दक्षिण नौलि ।
- त्राटक :- त्राटक के अन्य विभाग नहीं किये गए हैं । वैसे इसके तीन भाग होते हैं लेकिन वह अन्य योगियों के द्वारा कहे गए हैं ।
- कपालभाति :- कपालभाति के तीन भाग होते हैं –
- वातक्रम कपालभाति
- व्युत्क्रम कपालभाति
- शीतक्रम कपालभाति ।
द्वितीय अध्याय :-
दूसरे अध्याय में आसनों का वर्णन किया गया है । महर्षि घेरण्ड का मानना है कि संसार में जितने भी जीव – जन्तु हैं, उतने ही आसन होते है । भगवान शिव ने चौरासी लाख (8400000) आसन कहे हैं, उनमें से उन्होंने चौरासी (84) को ही श्रेष्ठ माना है । यहाँ पर महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि उन चौरासी श्रेष्ठ आसनों में से भी बत्तीस (32) आसन अति विशिष्ट होते हैं । अतः घेरण्ड संहिता में कुल बत्तीस आसनों का वर्णन मिलता है । जिनके नाम निम्नलिखित हैं –
- सिद्धासन, 2. पद्मासन, 3. भद्रासन, 4. मुक्तासन, 5. वज्रासन, 6. स्वस्तिकासन, 7. सिंहासन, 8. गोमुखासन, 9. वीरासन,10. धनुरासन, 11. मृतासन / शवासन, 12. गुप्तासन, 13. मत्स्यासन, 14. मत्स्येन्द्रासन, 15. गोरक्षासन, 16. पश्चिमोत्तानासन, 17. उत्कट आसन, 18. संकट आसन, 19. मयूरासन, 20. कुक्कुटासन, 21. कूर्मासन, 22. उत्तानकूर्मासन, 23. मण्डुकासन, 24. उत्तान मण्डुकासन, 25. वृक्षासन, 26. गरुड़ासन, 27. वृषासन, 28. शलभासन, 29. मकरासन, 30. उष्ट्रासन,
- भुजंगासन, 32. योगासन
महर्षि घेरण्ड ने सिंहासन को सभी व्याधियों ( रोगों ) को समाप्त करने वाला आसन माना है ।
तृतीय अध्याय : –
तीसरे अध्याय में योग की मुद्राओं का वर्णन किया गया है । मुद्राओं का अभ्यास करने से शरीर में स्थिरता आती है । घेरण्ड संहिता में कुल पच्चीस (25) मुद्राओं का उल्लेख मिलता है । इन पच्चीस मुद्राओं के नाम निम्न हैं –
- महामुद्रा, 2. नभोमुद्रा, 3. उड्डियान बन्ध, 4. जालन्धर बन्ध, 5. मूलबन्ध, 6. महाबंध, 7. महाबेध मुद्रा, 8. खेचरी मुद्रा, 9. विपरीतकरणी मुद्रा, 10. योनि मुद्रा, 11. वज्रोली मुद्रा, 12. शक्तिचालिनी मुद्रा, 13. तड़ागी मुद्रा, 14. माण्डुकी मुद्रा, 15. शाम्भवी मुद्रा, 16. पार्थिवी धारणा, 17. आम्भसी धारणा, 18. आग्नेयी धारणा, 19. वायवीय धारणा, 20. आकाशी धारणा, 21. अश्विनी मुद्रा, 22. पाशिनी मुद्रा, 23. काकी मुद्रा, 24. मातङ्गी मुद्रा, 25. भुजङ्गिनी मुद्रा ।
चतुर्थ अध्याय :-
चौथे अध्याय में प्रत्याहार का वर्णन किया गया है । प्रत्याहार के पालन से हमारी इन्द्रियाँ अन्तर्मुखी होती है । साथ ही धैर्य की वृद्धि होती है । जब साधक की इन्द्रियाँ बहिर्मुखी होती हैं तो उससे साधना में विघ्न उत्पन्न होता है । इसलिए साधक को धैर्य व संयम की प्राप्ति के लिए प्रत्याहार का पालन करना चाहिए ।
पंचम अध्याय :-
पाँचवें अध्याय में मुख्य रूप से प्राणायाम की चर्चा की गई है । लेकिन प्राणायाम की चर्चा से पहले आहार के ऊपर विशेष बल दिया गया है । मुख्य रूप से तीन प्रकार के आहार की चर्चा की गई है । जिसमें आहार की तीन श्रेणियाँ बताई हैं –
- मिताहार
- ग्राह्य या हितकारी आहार
- अग्राह्य निषिद्ध आहार ।
इनमें से मिताहार को योगी के लिए श्रेष्ठ आहार माना है । ग्राह्य या हितकारी आहार में वें खाद्य पदार्थ शामिल किये गए हैं जो शीघ्र पचने वाले व मन के अनुकूल होते हैं । निषिद्ध आहार को सर्वथा त्यागने की बात कही गई है ।
नाड़ी शोधन क्रिया :-
घेरण्ड संहिता में भी प्राणायाम से पूर्व नाड़ी शोधन क्रिया के अभ्यास की बात कही गई है ।
प्राणायाम चर्चा :-
पाँचवें अध्याय का मुख्य विषय प्राणायाम ही है । यहाँ पर भी प्राणायाम को कुम्भक कहा है । इस ग्रन्थ में भी आठ कुम्भकों अर्थात प्राणायामों का वर्णन किया गया है । जो निम्न हैं –
- सहित ( सगर्भ व निगर्भ ) 2. सूर्यभेदी, 3. उज्जायी, 4. शीतली, 5. भस्त्रिका, 6. भ्रामरी, 7. मूर्छा, 8. केवली ।
षष्ठ अध्याय :-
छटे अध्याय में ध्यान की चर्चा की गई है । घेरण्ड संहिता में तीन प्रकार के ध्यान का उल्लेख मिलता है –
- स्थूल ध्यान, 2. ज्योतिर्ध्यान 3. सूक्ष्म ध्यान ।
इनमें सबसे उत्तम ध्यान सूक्ष्म ध्यान को माना गया है ।
सप्तम अध्याय :-
सातवें अर्थात अन्तिम अध्याय में समाधि की चर्चा की गई है । समाधि चित्त की उत्कृष्ट अर्थात उत्तम अवस्था को कहा गया है । समाधि से निर्लिप्तता आती है । जब हमारे चित्त की सभी पदार्थों के प्रति लिप्तता समाप्त हो जाती है । तब यह योग सिद्ध होता है । घेरण्ड संहिता में समाधि के छः (6) भेद कहे गए हैं –
- ध्यानयोग समाधि, 2. नादयोग समाधि, 3. रसानन्द योग समाधि, 4. लययोग समाधि, 5. भक्तियोग समाधि, 6. राजयोग समाधि ।
इस प्रकार महर्षि घेरण्ड ने अपने सप्तांग योग का वर्णन किया है ।
ॐ गुरुदेव*
बहुत ही सुन्दर,सारगर्भित व उत्तम व्याख्या
।आपका हृदय से अभिनन्दन।
Adbhut
ॐ बहुत बढ़िया सोमवीर जी ।
Very nice explanations sir thank you very much
?प्रणाम आचार्य जी ??इस अनुपम कृति को सरल शब्दो मे स्वयं भाष्य कृत करने के लिए बहुत-बहुत बधाई गुरु जी?? धन्यवाद ?ओम
बहुत सुंदर विवेचन। धन्यवाद।
हरि ओम
बहुत बढ़िया सर…आज से आपकी घेरंड संहिता की व्याख्या पढ़ रहा हूं.
प्रणाम सर जी
प्रणाम सर जी
प्रणाम सर जी,
सर जी घेरण्ड संहिता में कुल कितने श्लोक है और किस अध्याय में कितने है?
बहूत खूबसूरत।धन्यवाद
Gherand samhita me kapalbhati ko kya kaha gaya nai.kripaya answer bataye
Such u r proud of our country and ispration for us because u save our culture we proud our culture jai Hind
Very nice description I want detailed methods and techniques PL communicate
जय श्री कृष्ण
गुरुजी
इतने बड़े और बृहत शास्त्र को कम से कम शब्दों में समाहित करने से हम जैसों काफी लाभ हुआ
धन्यवाद
ॐ गुरुदेव
बहुत ही सुन्दर। आपका हृदय से अभिनन्दन।
धन्यवाद ………????सर इतना अच्छा पढाने के लिए
Sir apse net ki pripration k liye puchna tha mujhe leni hai
Parnan swami ji mujhe gherand sahitya me dhyan ke tinio prkar ke bare me vistaar se janna h
प्रणाम सर
मै मुकेश कमार
आपका बहुत बहुत धन्यवाद इन ग्रंथो को संक्षिप्त करने क लिये
Very beautifully and simply explained, Thank you so much.
ye kaun se publication ke book ka hai