भगवान शिव को नमस्कार   नमः शिवाय गुरवे नादबिन्दुकलात्मने । निरञ्जनपदं याति नित्यं यत्र परायण: ।। 1 ।।   भावार्थ :- जिस परम गुरु के प्रति निरन्तर समर्पित भाव से भक्ति करने मात्र से साधक को परमपद अर्थात् समाधि की प्राप्ति हो जाती है । उन नाद बिन्दु व कला स्वरूप गुरु भगवान शिव को

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Hatha Pradipika Ch. 4 [1-7]

गुरु का महत्त्व   राजयोगस्य माहात्म्यं को वा जानाति तत्त्वतः । ज्ञानं मुक्ति: स्थिति: सिद्धिर्गुरूवाक्येन लभ्यते ।। 8 ।।   भावार्थ :- राजयोग की उपयोगिता को कोई विरला ही जान पाता होगा । इसका ज्ञान, मुक्ति, अपने स्वरूप में स्थित होना व सिद्धि की प्राप्ति आदि का लाभ गुरु के उपदेश से ही प्राप्त होता

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Hatha Pradipika Ch. 4 [8-10]

उत्पन्नशक्तिबोधस्य त्यक्तनि: शेषकर्मण: । योगिन: सहजावस्था स्वयमेव प्रजायते ।। 11 ।।   भावार्थ :- कुण्डलिनी शक्ति के उत्पन्न होने अर्थात् जागृत होने व सभी कर्मों का त्याग (  सभी सकाम कर्म अर्थात् जो कर्म बन्धन का कारण बनते हैं ) करने से योगी की समाधि अपने आप ही लग जाती है । उसके लिए उसे

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Hatha Pradipika Ch. 4 [11-17]

सभी बहत्तर हजार ( 72000 ) नाड़ियाँ में सुषुम्ना की महत्ता   द्वासप्तति सहस्त्राणि नाडीद्वाराणि पञ्जरे । सुषुम्ना शाम्भवी शक्ति: शेषास्त्वेव निरर्थका: ।। 18 ।।   भावार्थ :- इस मानव शरीर में कुल बहत्तर हजार ( 72000 ) नाड़ियाँ है । इनमें से सुषुम्ना नाड़ी ही सबसे प्रमुख है जिसे शाम्भवी शक्ति भी कहते हैं

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Hatha Pradipika Ch. 4 [18-24]

  तत्रैकनाशादपरस्य नाश: एकप्रवृत्तेरपरप्रवृत्ति: । अध्वस्तयोश्चेन्द्रियवर्गवृत्ति: प्रध्वस्तयोर्मोक्षपदस्य सिद्धि: ।। 25 ।।   भावार्थ :- इन दोनों में से ( मन व प्राण ) यदि एक नष्ट ( उनकी गतिशीलता  ) हो जाता है तो दूसरा भी स्वयं ही नष्ट हो जाता है अर्थात् दूसरे की गति का नाश भी अपने आप ही हो जाता है

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Hatha Pradipika Ch. 4 [25-30]

प्रनष्टश्वासनि:श्वास: प्रध्वस्तविषयग्रह: । निश्चेष्टो निर्विकारश्च लयो जयति योगिनाम् ।। 31 ।।   भावार्थ :- जिस साधक के प्राणों की गति समाप्त हो गई है अर्थात् जिसने प्राणायाम द्वारा अपने श्वास- प्रश्वास को पूरी तरह से नियंत्रित कर लिया है । जिस साधक की इन्द्रियों द्वारा बाह्य विषयों का पूर्ण रूप से त्याग हो चुका है

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Hatha Pradipika Ch. 4 [31-34]

शाम्भवी मुद्रा वर्णन   वेदशास्त्रपुराणानि सामान्यगणिका इव । एकैक शाम्भवी मुद्रा गुप्ता कुलवधूरिव ।। 35 ।।   भावार्थ :- वेद, शास्त्र और पुराण आदि ग्रन्थ सामान्य व आसानी से प्राप्त होने वाले हैं । लेकिन शाम्भवी मुद्रा ही एकमात्र कुलवधू ( अच्छे परिवार की बहू ) के समान गुप्त होती है ।   विशेष :-

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Hatha Pradipika Ch. 4 [35-42]