कुण्डलिनी का महत्त्व सशैलवनधात्रीणां यथा धारोऽहिनायक: । सर्वेषां योगतन्त्राणां तथा धारो हि कुण्डली ।। 1 ।। भावार्थ :- जिस प्रकार शेषनाग को वन पर्वतों सहित पूरी पृथ्वी का आधार माना जाता है । ठीक उसी प्रकार कुण्डलिनी शक्ति को सभी योग व तन्त्रों का आधार माना जाता है । सुप्ता गुरुप्रसादेन यदा …
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- Category: hatha pradipika 3