एतत् त्रयं महागुह्यं जरामृत्युविनाशमम् ।
वह्निवृद्धिकरं चैव ह्यणिमादिगुणप्रदम् ।। 30 ।।
भावार्थ :- महाबन्ध, महामुद्रा और महावेध मुद्राओं को पूरी तरह से गुप्त रखना चाहिए । इनका अभ्यास बुढ़ापा व मृत्यु को दूर करता है । जठराग्नि को मजबूत करती हैं । साथ ही अणिमा आदि सिद्धियाँ प्रदान करती हैं ।
अष्टधा क्रियते चैव यामे यामे दिने दिने ।
पुण्यसंभारसंधायि पापौघभिदुरं सदा ।
सम्यक् शिक्षावतामेवं स्वल्पं प्रथमसाधनम् ।। 31 ।।
भावार्थ :- साधक को इन मुद्राओं का अभ्यास दिनभर में आठ बार करना चाहिए । यह साधकों के सभी प्रकार के पाप नष्ट करके उसे पुण्य प्रदान करने वाली होती हैं । अच्छे व बुद्धिमान साधकों को शुरुआती समय में इनका अभ्यास कम मात्रा में ( थोड़े समय तक ) करना चाहिए ।
Thank you sir
ऊॅ सर जी ! महाबन्ध ,महामुद्रा , महावेध इनके विषय मे और विस्तार से जानने की इच्छा है सर ।
धन्यवाद।