जन्मौषधिमन्त्रतप: समाधिजा: सिद्धयः ।। 1 ।।   शब्दार्थ :- जन्म ( जन्मजात अर्थात जन्म से ही ) औषधि ( औषधियों अथवा रसायनों के सेवन से ) मन्त्र ( मन्त्रों के उच्चारण द्वारा ) तप: ( द्वन्द्वों को सहने से ) समाधिजा: ( धारणा, ध्यान व समाधि से ) सिद्धयः ( अनेक सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं

Read More
Yoga Sutra 4 – 1

जात्यन्तरपरिणाम:  प्रकृत्यापूरात् ।। 2 ।।   शब्दार्थ :- जाति ( शरीर व इन्द्रियों में ) अन्तर ( बदलाव  ) प्रकृति ( प्रकृति की ) आपूरात् ( पूर्णता के ) परिणाम ( परिणाम अथवा फल से होता है )     सूत्रार्थ :- प्रकृति की पूर्णता से योगी के शरीर व उसकी इन्द्रियों में जो परिवर्तन

Read More
Yoga Sutra 4 – 2

निमित्तमप्रयोजकं प्रकृतीनां वरणभेदस्तु तत: क्षेत्रिकवत्।। 3 ।।   शब्दार्थ :- निमित्तम् ( जो कार्य को पूरा कराने में सहायक होते हैं ) प्रकृतिनाम् ( वह प्रकृतियों अर्थात जो शरीर के उपादान कर्ता हैं ) अप्रयोजकम् ( उनको चलाने वाले अथवा उनके संचालक नहीं हैं बल्कि ) तत: ( वह तो केवल ) वरणभेद: ( बाधाओं

Read More
Yoga Sutra 4 – 3

निर्माणचित्तान्यस्मितामात्रात्  ।। 4 ।।     शब्दार्थ :-  चित्तानि ( चित्तों की )  निर्माण ( उत्पत्ति ) अस्मितामात्रात् ( अहंकार नामक तत्त्व से होती है )     सूत्रार्थ :- चित्तों की उत्त्पत्ति का कारण अस्मिता अर्थात अहंकार नामक तत्त्व होता है ।     व्याख्या :- इस सूत्र में चित्तों के उपादान अर्थात उत्पत्ति

Read More
Yoga Sutra 4 – 4

प्रवृत्तिभेदे प्रयोजकं चित्तमेकमनेकेषाम् ।। 5 ।।   शब्दार्थ :- प्रवृत्तिभेदे ( चित्त को अलग- अलग विषयों या व्यापारों के आधार पर ) अनेकेषाम् ( विभिन्न चित्त व्यापारों का )   प्रयोजकम् ( संचालन अथवा चलाने वाला ) चित्तम् ( वह चित्त ) एकम् ( एक ही है )     सूत्रार्थ :- चित्त को विभिन्न विषयों

Read More
Yoga Sutra 4 – 5

तत्र ध्यानजमनाशयम् ।। 6 ।।   शब्दार्थ :- तत्र ( उनमें से अर्थात पूर्व में वर्णित चित्तों में ) ध्यानजम् ( ध्यान से जनित अर्थात उत्पन्न चित्त ) अनाशयम् ( आश्रय से रहित अर्थात कर्म संस्कार से रहित होता है )   सूत्रार्थ :- पहले के सूत्रों में कहे गए चित्तों में से ध्यान से

Read More
Yoga Sutra 4 – 6

कर्माशुक्लाकृष्णं योगिनस्त्रिविधमितरेषाम् ।। 7 ।।   शब्दार्थ :- योगिन: ( योगी के ) कर्म ( कार्य ) अशुक्ल ( पुण्य से रहित व ) अकृष्णम् ( पाप से रहित होते हैं ) इतरेषाम् ( अन्यों अर्थात दूसरों के ) त्रिविधम् ( तीन प्रकार के होते हैं )     सूत्रार्थ :- योगी व्यक्तियों के कर्म

Read More
Yoga Sutra 4 – 7