निमित्तमप्रयोजकं प्रकृतीनां वरणभेदस्तु तत: क्षेत्रिकवत्।। 3 ।।

 

शब्दार्थ :- निमित्तम् ( जो कार्य को पूरा कराने में सहायक होते हैं ) प्रकृतिनाम् ( वह प्रकृतियों अर्थात जो शरीर के उपादान कर्ता हैं ) अप्रयोजकम् ( उनको चलाने वाले अथवा उनके संचालक नहीं हैं बल्कि ) तत: ( वह तो केवल ) वरणभेद: ( बाधाओं या रुकावटों को दूर करने वाले होते हैं ) क्षेत्रिकवत् ( खेत में काम करने वाले किसान की तरह )

 

 

सूत्रार्थ :- धर्म आदि जो निमित्त पदार्थ होते हैं वह इस प्रकृति के संचालक नहीं होते । वह तो मात्र प्रकृति के कार्य हैं । वे योगी के मार्ग में आने वाली बाधाओं को उसी प्रकार दूर करते हैं । जैसे खेत में पानी देते हुए एक किसान पानी व खेत के बीच आने वाली बाधाओं को रस्ते से हटाता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में धर्म आदि कारकों को योग मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने वाला बताया है

 

धर्म आदि निमित्त प्रकृति को चलाने वाले नहीं हो सकते । क्योंकि कार्य के द्वारा कभी भी कारण का संचालन नहीं किया जा सकता । एक कुम्हार जब मिट्टी, जल, चक्र आदि की सहायता से घड़े को बनाता है । तो उसमें मिट्टी, जल व चक्र आदि कारक घड़े को बनाते हैं । लेकिन घड़े के द्वारा मिट्टी, जल व चक्र आदि का संचालन नहीं किया जा सकता । क्योंकि उन सभी के द्वारा घड़े का निर्माण किया गया है । अतः कार्य कभी भी कारण को परिवर्तित नहीं कर सकता ।

 

इसी प्रकार इससे पहले सूत्र में वर्णित सिद्धि प्राप्ति के पाँच कारको ( जन्म, औषधि, मन्त्र, तप व समाधि ) के द्वारा प्रकृति के तत्त्वों के गुण या स्वभाव में परिवर्तन नहीं किया जा सकता । बल्कि उनके मार्ग में आने वाली रुकावटों अथवा बाधाओं को अवश्य हटाता जा सकता है ।

 

जिस प्रकार एक किसान अपने खेत में पानी देते हुए पानी और खेत केे बीच में आने वाली सभी रुकावटों को हटाने का काम करता है । जब किसान खेत में पानी की सिंचाई करता है तो पहले वह एक क्यारी ( खेत के एक छोटे भाग को ) को पहले भरता है । और जब उस क्यारी में पानी भर जाता है । तब वह उस क्यारी और दूसरी क्यारी के बीच में आने वाले मेड़ ( दो क्यारियों के बीच होने वाली मिट्टी की मोटी परत ) को तोड़ देता है । जिससे पानी का बहाव दूसरी क्यारी की तरफ हो जाता है । और इस प्रकार दूसरी क्यारी में भी पानी बिना किसी बाधा के आसानी से पहुँच जाता है ।

 

इस प्रकार फसल को पानी की पर्याप्त मात्रा मिलने से फसल अच्छी होती है । उसी प्रकार जन्म, औषधि आदि सिद्धियों के द्वारा योग मार्ग में आने वाली बाधाएँ दूर होने से योग साधना को पोषण ( उचित खुराक ) मिलता है । जिससे योगी को साधना में आसानी से सफलता मिलती है । जैसे ही साधना में आने वाली रुकावटें हट जाती हैं । वैसे ही साधना में सिद्धि प्राप्त होने का मार्ग अपने आप खुल जाता है ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    बहुत ही सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की है आपने।
    आपको हृदय से आभार।

  2. ??प्रणाम आचार्य जी! बहुत सुन्दर वण॔न! आपका बहुत बहुत धन्यवाद! ओम! ?

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