तदा सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्यानन्त्याज्ज्ञेयमल्पम् ।। 31 ।।

 

शब्दार्थ :- तदा ( तब अर्थात क्लेशों व सकाम कर्मों के समाप्त होने पर ) सर्व ( सभी ) आवरण ( ढके हुए ) मल ( अज्ञान रूपी मल अर्थात गन्दगी ) अपेतस्य ( हट चुके हैं या दूर हो चुके हैं ) ज्ञानस्य ( ऐसे विशुद्ध ज्ञान के ) आनन्त्यात् ( अधिक अर्थात सीमा रहित होने से ) ज्ञेयम् ( जानने के योग्य ज्ञान ) अल्पम् ( अल्प अर्थात बहुत ही कम बचता है )

 

 

सूत्रार्थ :- क्लेशों और सकाम कर्मों के समाप्त होने पर योगी के ज्ञान को ढकने वाले अज्ञान रूपी सभी मल दूर हो जाते हैं । इससे प्राप्त विशुद्ध ज्ञान अधिक मात्रा में होने पर योगी द्वारा जानने योग्य थोड़ा ही ज्ञान शेष बचता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में बताया गया है कि योगी के सभी क्लेश व सकाम कर्मों के समाप्त होने पर उसे अनन्त ज्ञान की प्राप्ति होती है । जिसके प्राप्त होने से नाम मात्र ज्ञान ही शेष बचता है ।

 

धर्ममेघ नामक समाधि के प्राप्त होने पर योगी के सभी क्लेश व सकाम कर्म समाप्त हो जाते हैं । सभी क्लेश व कर्म के आवरण से मुक्त होने से योगी के ज्ञान को ढकने वाले सभी अज्ञान रूपी मल स्वयं ही दूर हो जाते हैं । इनके दूर होते ही योगी के अन्दर असीम ( जिसकी कोई सीमा नहीं होती ) ज्ञान का प्रवाह हो जाता है ।

 

अज्ञान रूपी मल से रहित इस ज्ञान के प्राप्त होने से योगी के अन्दर जानने योग्य ज्ञान अथवा पदार्थ अल्प या तुच्छ मात्रा में ही शेष बचते हैं । ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार विशाल आकाश में जुगनू । यहाँ पर शेष बचे हुए ज्ञान का अर्थ है कि आत्मा या पुरुष कभी भी सर्वज्ञ नहीं हो सकता । क्योंकि सर्वज्ञ तो केवल परमात्मा होता है । इस धर्ममेघ समाधि से योगी के लिए जितना जानना आवश्यक होता है । उतना वह जान चुका होता है । बस जानने के योग्य वही शेष बचता है जिसको जानने के लिए पुरुष योग्य ही नहीं होता ।

 

ऐसे योगी के बारे में कहा गया है कि उस योगी का दोबारा जन्म लेना उतना ही असम्भव है । जितना कि एक अन्धे व्यक्ति द्वारा मणि को बींधना, उस मणि को अँगुली रहित व्यक्ति द्वारा माला में पिरोना, गर्दन रहित व्यक्ति के द्वारा उसे गले में पहनना व जिव्हा ( जीभ ) रहित व्यक्ति द्वारा उसकी प्रशंसा करना असम्भव होता है ।

 

इस प्रकार सभी क्लेशों व सकाम कर्मों से मुक्त योगी का ज्ञान असीमित हो जाता है । जिससे उसके लिए ऐसा कुछ विशेष ज्ञान नहीं बचता । जिसे जानना उसके लिए अनिवार्य हो । ऐसा योगी जन्म- मरण के कालचक्र से पूरी तरह से मुक्त हो जाता है । उसकी पुनर्जन्म की कोई भी सम्भावना शेष नहीं रहती ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    योगामृत का रसास्वादन कराने हेतु
    आपको कोटि _कोटि धन्यवाद।

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