आहार-विहार व व्यवहार के बदलाव से होगा नववर्ष शुभ                       डॉ० सोमवीर आर्य युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।। ( गीता : अ.-6, श्लोक-17 ) अर्थात् योग किसका सिद्ध होता है? जिसका आहार-विहार नियमित है, अर्थात जो सदा भोजन व व्यवहार करने में अनुशासित रहता है, कर्मों में जिसकी चेष्टा नियमित है अर्थात जो सभी

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Aahar – Vihar & Vyavhaar (Yogic Dietary Habits)

ध्यान क्यों करें ?                       डॉ० सोमवीर आर्य   कहाँ खोए हुए हो ? ये तुमने क्या कर दिया ? तुमने सारा काम खराब कर दिया, काम के समय पर तुम्हारा ध्यान किधर रहता है ? कभी तो कोई काम ठीक ढंग से किया करो, तुम्हें इसका ध्यान रखना चाहिए था या तुम ध्यान नहीं

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Meditation

महर्षि व्यासजी ( संकलन कर्ता )   व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्‍गुह्यमहं परम्‌ । योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम्‌ ।। 75 ।।     व्याख्या :-  महर्षि व्यासजी की विशेष कृपा दृष्टि से मैंने स्वयं इस परम गोपनीय योग ज्ञान को प्रत्यक्ष रूप से योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुख से सुना है ।     विशेष :- संजय ने गीता के परम

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Bhagwad Geeta Ch. 18 [75-78]

कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा । कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय ।। 72 ।।     व्याख्या :-  भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से पूछते हैं – हे पार्थ ! क्या तुमने इस ज्ञान को एकाग्र चित्त से सुना है ? और हे धनंजय ! क्या इससे तुम्हारा अज्ञान से जनित ( उत्पन्न ) मोह नष्ट हो गया ?  

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Bhagwad Geeta Ch. 18 [72-74]

य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति । भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ।। 68 ।।     व्याख्या :-  जो मेरे प्रति परम भक्ति का भाव रखते हुए अथवा मुझसे प्रेम करते हुए इस श्रेष्ठ व गुप्त ज्ञान को मेरे भक्तों को बताएगा, वह निश्चित रूप से मुझको ही प्राप्त होगा । इसमें किसी प्रकार का

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Bhagwad Geeta Ch. 18 [68-71]