महर्षि व्यासजी ( संकलन कर्ता )

 

व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्‍गुह्यमहं परम्‌ ।

योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम्‌ ।। 75 ।।

 

 

व्याख्या :-  महर्षि व्यासजी की विशेष कृपा दृष्टि से मैंने स्वयं इस परम गोपनीय योग ज्ञान को प्रत्यक्ष रूप से योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुख से सुना है ।

 

 

विशेष :-

  • संजय ने गीता के परम ज्ञान को किसकी कृपा दृष्टि से प्रत्यक्ष रूप से सुना ? उत्तर है – महर्षि व्यासजी की कृपा दृष्टि से ।
  • गीता के संकलन कर्ता कौन हैं ? उत्तर है – महर्षि व्यासजी ।

 

 

राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्‌ ।

केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः ।। 76 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे राजन ! केशव और अर्जुन के इस पुण्य व अद्भुत संवाद का बार- बार स्मरण ( याद ) करके मैं हर्षित हो रहा हूँ अथवा मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है ।

 

 

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः ।

विस्मयो मे महान्‌ राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः ।। 77 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे राजन ! भगवान श्रीकृष्ण के उस अत्यंत व अद्भुत विश्वरुप का बार- बार स्मरण करके मुझे महान आश्चर्य व हर्ष हो रहा है ।

 

 

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।। 78 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे राजन ! मेरा ऐसा मानना है कि जहाँ पर योगेश्वर श्रीकृष्ण और धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीं पर श्री है, वहीं पर विजय है, वहीं पर विभूति है और स्थिर नीति भी वहीं पर है ।

 

 

 

विशेष :-  यह गीता का अन्तिम श्लोक है, जो संजय द्वारा बोला गया है ।

  • गीता के अनुसार श्री, विजय, विभूति और स्थिर नीति कहाँ पर होती हैं ? उत्तर है – जहाँ पर योगेश्वर श्रीकृष्ण व धनुर्धर अर्जुन हैं ।
  • गीता का अन्तिम श्लोक किसके द्वारा कहा अथवा बोला गया है ? उत्तर है – संजय द्वारा ।

 

 

 

अध्याय अठारह ( मोक्षसन्नयासयोग ) पूर्ण हुआ ।

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