जन्मौषधिमन्त्रतप: समाधिजा: सिद्धयः ।। 1 ।।

 

शब्दार्थ :- जन्म ( जन्मजात अर्थात जन्म से ही ) औषधि ( औषधियों अथवा रसायनों के सेवन से ) मन्त्र ( मन्त्रों के उच्चारण द्वारा ) तप: ( द्वन्द्वों को सहने से ) समाधिजा: ( धारणा, ध्यान व समाधि से ) सिद्धयः ( अनेक सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं )

 

  

सूत्रार्थ :- जन्मजात, औषधियों के सेवन से, मन्त्रों के जप से, तप का पालन करने से और समाधि का पालन करने से योगी में अनेक सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं ।

 

 

व्याख्या :-  यह योगसूत्र के अन्तिम पाद ( कैवल्य पाद ) का प्रथम सूत्र है । जिसमें योगी द्वारा प्राप्त की जाने वाली पाँच प्रकार की सिद्धियों का वर्णन किया गया है ।

 

इन सभी पाँच प्रकार की सिद्धियों का वर्णन इस प्रकार है :-

  1. जन्म से उत्पन्न सिद्धि
  2. औषधियों से उत्पन्न सिद्धि
  3. मन्त्रों से उत्पन्न सिद्धि
  4. तप से उत्पन्न सिद्धि
  5. समाधि से उत्पन्न सिद्धि ।

 

  1. जन्म से उत्पन्न सिद्धि :- जन्म से उत्पन्न सिद्धि का अर्थ है जिस सिद्धि को प्राप्त करने के लिए इस जन्म में कोई विशेष प्रयास अथवा कोशिश नहीं की गई हो । वह जन्मजात सिद्धि कहलाती है । इसके पीछे साधक के पूर्व जन्म के संस्कार उत्तरदायी होते हैं । जिन साधकों ने पूर्व जन्म में बहुत अच्छे कर्म किए होगें । उसे उनके फल का कुछ अंश ( भाग ) अगले जन्म में भी मिलता है । समाधिपाद के उन्नीसवें सूत्र में भवप्रत्यय योगी की जो बात कही गई है । वह पूर्व जन्म पर ही आधारित है । भवप्रत्यय का अर्थ होता है ऐसे योगी जिनकी साधना बहुत उच्च कोटि की होती है । लेकिन समाधि प्राप्त होने से ठीक पहले शरीर का त्याग ( मृत्यु ) हो जाता है । तब ऐसे साधकों की साधना अगले जन्म में वहीं से शुरू होती है । जहाँ पर पिछले जन्म में खत्म हुई थी । अतः इस प्रकार से बहुत सारे योगी साधकों को जन्म से ही सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है ।
  2. औषधियों से उत्पन्न सिद्धि :- कुछ सिद्धियाँ औषधियों के प्रयोग से भी उत्पन्न होती हैं । आयुर्वेद में रसायन के प्रयोग से शरीर में अनेक प्रकार की शक्तियों को उत्पन्न किया जा सकता है । जिससे बूढ़ा आदमी भी जवान दिखने लगता है । इस प्रकार दिव्य रसायनों व औषधियों के प्रयोग से च्वयन ऋषि ने अपने आप को पुनः जवान कर लिया था । इस प्रकार औषधियों के प्रयोग से भी सिद्धियों की प्राप्ति होती है ।
  3. मन्त्रों से उत्पन्न सिद्धि :- मन्त्र साधना की उपयोगिता का अनुमान हम तन्त्रशास्त्रों में वर्णित मन्त्र योग से ही लगा सकते हैं । मन्त्र योग हमारी तन्त्र साधना का एक अभिन्न अंग है । जिसकी साधना करके हम अपने मन, बुद्धि, इन्द्रियों को अपने अधीन कर लेते हैं । जिससे हमें एकाग्रता की प्राप्ति होती है । इन मन्त्रों से हमारे चित्त व हमारी इन्द्रियों में नई ऊर्जा का संचार होता है । जिसे मन्त्र से उत्पन्न शक्ति अथवा सिद्धि कहा जाता है ।
  4. तप से उत्पन्न सिद्धि :- तप का अर्थ है द्वन्द्वों को सहना । यह द्वन्द्व सर्दी- गर्मी, भूख- प्यास, लाभ- हानि व मान- अपमान के रूप में हमें परेशान करते रहते हैं । लेकिन जब हम शास्त्रों के अनुसार तप का पालन करते हैं । तब उस तप से हमारे चित्त की पूरी शुद्धि होती है । जिससे हमारे अन्दर द्वन्द्वों को सहने की सामर्थ्यता अर्थात ताकत आती है । इसे तप से उत्पन्न सिद्धि कहते हैं ।
  5. समाधि से उत्पन्न सिद्धि :- धारणा, ध्यान व समाधि का एक साथ प्रयोग करना संयम कहलाता है । जब- जब उस संयम का प्रयोग योगी किसी भी पदार्थ में करता है । तब- तब योगी को अद्भुत शक्तियों व सिद्धियों की प्राप्ति होती है । जिनका वर्णन पूरे विभूतिपाद में किया गया है । उन सभी सिद्धियों को समाधि से उत्पन्न सिद्धियाँ कहा जाता है ।

 

इस प्रकार कैवल्य पाद के प्रथम सूत्र का आरम्भ सिद्धियों के द्वारा होता है ।

Related Posts

October 15, 2018

पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसव: कैवल्यं स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति ।। 34 ।।    शब्दार्थ :- पुरुषार्थ ...

Read More

October 14, 2018

क्षणप्रतियोगी परिणामापरान्तनिर्ग्राह्य: क्रम: ।। 33 ।।   शब्दार्थ :- क्षण ( पलों के ) प्रतियोगी ...

Read More

October 13, 2018

तत: कृतार्थानां परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम् ।। 32 ।।     शब्दार्थ :- तत: ( उसके अर्थात ...

Read More

October 12, 2018

तदा सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्यानन्त्याज्ज्ञेयमल्पम् ।। 31 ।।   शब्दार्थ :- तदा ( तब अर्थात क्लेशों ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. ??प्रणाम आचार्य जी! आपका बहुत बहुत धन्यवाद योगसूत्र के साथ हमे लगातार जोड़े रखने के लिए ।ओम!बहुत सुंदर वण॔न! ?

  2. ॐ गुरुदेव*
    पांच प्रकार की सिद्धियों का बहुत ही अच्छा वर्णन प्रस्तुत किया है आपने।
    आपको बहुत बहुत धन्यवाद।

  3. प्रणाम आचार्यजी । बहुत सुन्दर एग्ज़ेंपल के साथ सूत्र का स्पष्टीकरण किया है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

  4. प्रणाम आचार्यजी । सुप्रभात । बहुतहि सुन्दर वर्णनं किया है सूत्र का एग्ज़ेंपल भी बहुत अच्छे दिए है । सूत्र के माध्यमसे बहुत श्रेष्ठ ज्ञान आपसे प्राप्त होता है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}