राजयोग की उपयोगिता

 

 राजयोगं विना पृथ्वी राजयोगं विना निशा ।

राजयोगं विना मुद्रा विचित्रापि न शोभते ।। 126 ।।

 

भावार्थ :- राजयोग के बिना सम्पूर्ण सुखों से भरी इस पृथ्वी का कोई प्रयोजन नहीं, न ही बिना राजयोग के रात्रि का कोई औचित्य है और बिना राजयोग के अनेक प्रकार की मुद्राएं भी शोभा नहीं देती हैं ।

 

विशेष :- इस श्लोक में राजयोग की उपयोगिता को दर्शाया गया है कि किस प्रकार राजयोग के बिना बाकी के सभी साधनों का कोई महत्त्व नहीं है ।

 

मारुत्स्य विधिं सर्वं मनोयुक्तं समभ्यसेत् ।

इतरत्र न कर्तव्या मनोवृत्तिर्मनीषिणा ।। 127 ।।

 

भावार्थ :- योगी साधक को पूरे मनोयोग से प्रणायाम से सम्बंधित सभी विधियों का अच्छी तरह अभ्यास करना चाहिए । इसके अतिरिक्त उसे अन्य किसी प्रकार के अनावश्यक विचार पर अपना ध्यान नहीं लगाना चाहिए ।

 

 

इति मुद्रा दश प्रोक्ता आदिनाथेन शम्भुना ।

एकैका तासु यमिनां महासिद्धि प्रदायिनी ।। 128 ।।

 

भावार्थ :- इस प्रकार आदिनाथ शिव यहाँ पर दस मुद्राओं का उल्लेख किया है । इनमें से प्रत्येक मुद्रा योगी साधक को बड़ी- बड़ी सिद्धियाँ प्रदान करने का सामर्थ्य रखती हैं ।

 

 

उपदेशं हि मुद्राणां यो दत्ते साम्प्रदायिकम् ।

स एव श्रीगुरु: स्वामी साक्षादीश्वर एव स: ।। 129 ।।

 

भावार्थ :- जो भी योगी नाथ परम्परा में उपदेशित इन मुद्राओं का ज्ञान देता है । वही आदरणीय गुरु, स्वामी एवं वही साक्षात ईश्वर के समान होता है ।

 

 

तस्य वाक्यपरो भूत्वा मुद्राभ्यासे समाहित: ।

अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते कालवञ्चनम् ।। 130 ।।

 

भावार्थ :- जो योगी साधक गुरु द्वारा उपदेशित इन मुद्राओं का अभ्यास पूरी एकाग्रता से करता है । वही अणिमा आदि सिद्धियों को प्राप्त करके मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर लेता है ।

 

 

।। इति श्री सहजानन्द सन्तानचिंतामणि स्वात्मारामयोगीन्द्रविरचितायां हठप्रदीपिकायां मुद्राविधानं नाम तृतीयोयोपदेश: ।।

 

भावार्थ :- इस प्रकार यह श्री सहजानन्द परम्परा के महान अनुयायी योगी स्वात्माराम द्वारा रचित हठप्रदीपिका ग्रन्थ में मुद्राओं की विधि बताने वाला तीसरा उपदेश पूर्ण हुआ ।

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