महामुद्रा वर्णन

 

पादमूलेन वामेन योनिं सम्पीड्य दक्षिणम् ।

प्रसारितं पादं कृत्वां कराभ्यां धारयेद् दृढम् ।। 10 ।।

कण्ठे बन्धं समारोप्य धारयेद्वायुमूर्ध्वत: ।

यथा दण्डहत: सर्पो दण्डाकार: प्रजायते ।। 11 ।।

ऋज्वीभूता तथा शक्ति: कुण्डली सहसा भवेत् ।

तदा सा मरणावस्था जायते द्विपुटाश्रया ।। 12 ।।

 

भावार्थ :- अपने बायें पैर की एड़ी से सीवनी प्रदेश ( योनि ) को दबाकर दूसरे अर्थात दायें पैर को भूमि पर सामने की तरफ फैलाकर उसे दोनों हाथों से मजबूती के साथ पकड़े । अब प्राणवायु को अन्दर भरकर जालन्धर बन्ध लगाएं । जिस प्रकार सर्प डण्डे की चोट खाकर डण्डे की तरह ही सीधा हो जाता है । ठीक उसी प्रकार महामुद्रा करने से कुण्डली शक्ति भी सीधी हो जाती है । ऐसा होने से दोनों नासिकाओं से आने- जाने वाली प्राणवायु की क्रियाशीलता लुप्तप्राय हो जाती है ।

 

 

तत: शनै: शनैरेव रेचयेन्न तु वेगत: ।

इयं खलु महामुद्रा महासिद्धै: प्रदर्शिता ।। 13 ।।

 

भावार्थ :- उसके बाद अर्थात महामुद्रा को करने के बाद जालन्धर बन्ध को हटाकर श्वास को धीरे- धीरे बाहर छोड़ना चाहिए । श्वास को छोड़ने में कभी भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए । महासिद्ध योगियों ने इसे महामुद्रा कहते हुए इसका वर्णन किया है ।

Related Posts

December 10, 2018

राजयोग की उपयोगिता    राजयोगं विना पृथ्वी राजयोगं विना निशा । राजयोगं विना मुद्रा ...

Read More

December 10, 2018

शक्ति चालन मुद्रा के लाभ   तस्मात् सञ्चालयेन्नित्यं सुख सुप्ता मरुन्धतीम् । तस्या: सञ्चालनेनैव ...

Read More

December 8, 2018

कुण्डलिनी को जगाने की विधि   अवस्थिता चैव फणावती सा प्रातश्च सायं प्रहरार्धमात्रम् । ...

Read More

December 8, 2018

शक्तिचालन मुद्रा वर्णन   कुटिलाङ्गी कुण्डलिनी भुजङ्गी शक्तिरीश्वरी । कुण्डल्यरुन्धती चैते शब्दा: पर्यायवाचका: ।। ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. सर ,धन्यवाद
    मूझे एक समस्या का हल चाहिए.
    मयूरासन, वातायनासन, बद्धज्ञ्पासन और एक हस्त बद्ध पच्छीमोत्तानासन.
    यह आसन योगोपचार में कैसे ऊपयूक्त है.

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}