महावेध का महत्त्व

 

रूपलावण्य सम्पन्ना यथा स्त्री पुरुषं बिना ।

महामुद्रामहाबन्धौ निष्फलौ वेधवर्जितौ ।। 25 ।।

 

भावार्थ :- जिस प्रकार पुरुष के बिना सुन्दर स्त्री पूर्ण नहीं होती अर्थात उसका कोई महत्त्व नहीं होता । ठीक उसी प्रकार महावेध मुद्रा की साधना के बिना महामुद्रा व महाबन्ध मुद्रा की साधना पूर्ण नहीं होती अर्थात महावेध मुद्रा के बिना महामुद्रा व महाबन्ध का कोई महत्त्व नहीं होता ।

 

महावेध मुद्रा विधि

 

महावेधस्थितो योगी कृत्वा पूरकमेकधी: ।

वायूनां गतिमावृत्य निभृतं कण्ठमुद्रया ।। 26 ।।

समहस्तयुगो भूमौ स्फिचौ संताडयेच्छनै:

पुटद्वयमतिक्रम्य वायु: स्फुरति मध्यग: ।। 27 ।।

सोम सूर्याग्निसम्बन्धो जायते चामृताय वै ।

मृतावस्था समुत्पन्ना ततो वायुं विरेचयेत् ।। 28 ।।

 

भावार्थ :- योगी साधक को पूरी तरह से एकाग्रचित्त होकर, महावेध मुद्रा की स्थिति लेकर, ( महाबन्ध वाली अवस्था ) श्वास- प्रश्वास की गति को रोककर, वायु को शरीर के अन्दर भरकर उसे अन्दर ही रोकते हुए जालन्धर बन्ध का प्रयोग करना चाहिए । अब अपने दोनों हाथों को जमीन पर टिकाकर दोनों नितम्बों को ऊपर उठाकर वापिस जमीन पर पटकना चाहिए । इस प्रकार करने से प्राण दोनों नासिका छिद्रों ( इडा व पिङ्गला ) को छोड़कर मध्यमार्ग अर्थात सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर जाता है । इस प्रकार इडा नाड़ी ( चन्द्र नाड़ी ) व पिङ्गला नाड़ी ( सूर्य नाड़ी ) परस्पर सुषुम्ना नाड़ी में जाकर मिल जाती हैं । जिससे साधक को अमरता की प्राप्ति होती है । साथ ही साधक का प्राण पर पूर्ण अधिकार हो जाता है । जिससे वह मृत्यु की अवस्था के समान अपने प्राण को नियंत्रित कर सकता है । इसके बाद साधक को उस प्राणवायु का रेचन अर्थात उसे बाहर निकालना चाहिए । यही महावेध मुद्रा कहलाती है ।

 

महावेध का फल

 

महावेधोऽयमभ्यासान्महासिद्धिप्रदायक: ।

वलीपलितवेपध्न: सेव्यते साधकोत्तमै: ।। 29 ।।

 

भावार्थ :- महावेध मुद्रा का अभ्यास करने से साधक को बहुत बड़ी- बड़ी सिद्धियों की प्राप्ति होती है । साथ ही कभी भी उसके शरीर में झुर्रियां नहीं पड़ती, बाल सफेद नहीं होते व शरीर की कम्पन भी दूर होती है । इसीलिए योग्य अर्थात उत्तम साधक इस मुद्रा का अभ्यास करते हैं ।

Related Posts

December 10, 2018

शक्ति चालन मुद्रा के लाभ   तस्मात् सञ्चालयेन्नित्यं सुख सुप्ता मरुन्धतीम् । तस्या: सञ्चालनेनैव ...

Read More

December 8, 2018

कुण्डलिनी को जगाने की विधि   अवस्थिता चैव फणावती सा प्रातश्च सायं प्रहरार्धमात्रम् । ...

Read More

December 8, 2018

शक्तिचालन मुद्रा वर्णन   कुटिलाङ्गी कुण्डलिनी भुजङ्गी शक्तिरीश्वरी । कुण्डल्यरुन्धती चैते शब्दा: पर्यायवाचका: ।। ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}