गुरु का महत्त्व
राजयोगस्य माहात्म्यं को वा जानाति तत्त्वतः ।
ज्ञानं मुक्ति: स्थिति: सिद्धिर्गुरूवाक्येन लभ्यते ।। 8 ।।
भावार्थ :- राजयोग की उपयोगिता को कोई विरला ही जान पाता होगा । इसका ज्ञान, मुक्ति, अपने स्वरूप में स्थित होना व सिद्धि की प्राप्ति आदि का लाभ गुरु के उपदेश से ही प्राप्त होता है ।
दुर्लभो विषयत्यागो दुर्लभं तत्त्वदर्शनम् ।
दुर्लभा सहजावस्था सद्गुरो: करुणां विना ।। 9 ।।
भावार्थ :- उत्तम गुरु की विशेष कृपा के बिना विषयों अर्थात् आसक्ति का त्याग, यथार्थ ज्ञान का मिलना व सहजावस्था अर्थात् समाधि की अवस्था का प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है ।
विविधैरासनै: कुम्भैर्विचित्रै: करणैरपि ।
प्रबुद्धायां महाशक्तौ प्राण: शून्ये प्रलीयते ।। 10 ।।
भावार्थ :- अनेक प्रकार के आसनों, कुम्भकों ( प्राणायाम ) व अनेक प्रकार की योग साधनाओं का अभ्यास करने से साधक कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है । जिससे प्राण सुषुम्ना नाड़ी में लीन ( मिल जाना ) हो जाता है ।
Thanku sir ??
Prnam Aacharya ji! Sunder! Om
Nice
अति सुंदर ।।
धन्यवाद।
Thanks sir
Thank you sir
Prnam Aacharya Ji. DHANYAVAD