तत: क्षीयते प्रकाशावरणम् ।। 52 ।।

 

शब्दार्थ :- तत: ( उस अर्थात प्राणायाम से ) प्रकाश ( ज्ञान ) आवरणम् ( परत या पर्दा ) क्षीयते ( कमजोर होता है । )

  

सूत्रार्थ :- प्राणायाम के अभ्यास से ज्ञान के ऊपर जमी हुई परत या पर्दा कमजोर हो जाता है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में प्राणायाम के प्रतिफल को बताया गया है ।

योगी साधक जब प्राणायाम का अभ्यास करता है तो उसका विवेक ज्ञान जागृत होता है । तथा उसके सभी पाप ( अशुभ ) कर्म भी धीरे- धीरे कमजोर हो जाते हैं ।

 

प्राणायाम करने से हमारा प्राण मजबूत बनता है । प्राण के मजबूत होने से हमारा मन मजबूत बनता है । जिससे मन में एकाग्रता आती है ।

प्राणायाम को सर्वश्रेष्ठ तप कहा गया है । अर्थात प्राणायाम से बढ़कर अन्य कोई तप नहीं है । इस प्राणायाम रूपी तप की अग्नि में अपने शरीर को तपाने से साधक के सभी दोषों व मलों की शुद्धि होती है । जिस प्रकार अग्नि में तपाने से सोने की सभी अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं । ठीक उसी प्रकार प्राणायाम रूपी अग्नि में शरीर को तपाने से शरीर के सभी दोष व मल दूर हो जाते हैं ।

 

शरीर के मलों व दोषों की शुद्धि होने पर शुद्ध ज्ञान के प्रकाश का उदय होता है । शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति होते ही अविद्या आदि क्लेश समाप्त हो जाते हैं ।

 

प्राणायाम से शारीरिक व मानसिक शुद्धि होती है । अनावश्यक विचारों पर नियंत्रण आता है । जिससे धीरे- धीरे सभी बुरे विचार समाप्त होने लगते हैं । और हमारी बुद्धि पर जो अज्ञान रूपी पर्दा पड़ा हुआ था । वह हटने लगता है । और हमें विवेक ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है ।

 

इस प्रकार प्राणायाम के नियमित अभ्यास से हमारा अज्ञान रूपी आवरण ( पर्दा या परत ) हट जाता है । और हमारे भीतर शुद्ध ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न होता है ।

 

अगले सूत्र में भी प्राणायाम के फल की ही चर्चा की गई है ।

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  1. ??प्रणाम आचार्य जी! प्राणायाम की इतनी सुन्दर व्याख्या को बताने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी ??

  2. ॐ गुरुदेव*
    आपका बहुत बहुत आभार ,योग के इस ज्ञानामृत का पान कराने हेतु।

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