धारणासु च योग्यता मनस: ।। 53 ।।

 

शब्दार्थ :- च ( और ) मनस: ( मन को ) धारणासु ( कहीं भी एकाग्र करने की ) योग्यता ( काबलियत या सामर्थ्य बढ़ जाता है । )

  

सूत्रार्थ :- और ( प्राणायाम के करने से ) मन को कहीं पर भी एकाग्र करने या लगाने की काबलियत या सामर्थ्य बढ़ जाता है ।

 

 व्याख्या :- इस सूत्र में प्राणायाम के अन्य लाभ को बताया गया है ।

 

प्राणायाम करने से पूर्व हमारे प्राण की गति अनियंत्रित व असहज होती है । प्राण के अनियंत्रित व असहज होने से हमारे मन की गति भी अनियंत्रित व असहज हो जाती है । लेकिन जैसे ही हम प्राणायाम का अभ्यास करना शुरू करते हैं वैसे ही हमारे प्राण की गति नियंत्रित व सहज होने लगती है । जिससे हमारे मन की गति भी नियंत्रित व सहज हो जाती है ।

 

एक सामान्य व्यक्ति एक मिनट में पन्द्रह (15) से अठारह (18) श्वसन पूरे करता है । और यदि किसी प्रकार की कोई व्याधि या बीमारी की अवस्था है तो यह संख्या और भी बढ़ जाती है । लेकिन प्राणायाम के करने से प्रति मिनट श्वसन की संख्या घटती रहती है । क्योंकि प्राणायाम करने से हमारा प्राण सूक्ष्म हो जाता है ।

 

प्राण के सूक्ष्म होने से उसकी गति पर पूरी तरह से हमारा नियंत्रण हो जाता है । और श्वास व प्रश्वास का अनियंत्रित क्रम रुक जाता है । जिससे मन की चंचलता भी रुक जाती है । क्योंकि प्राण का मन पे पूरी तरह से प्रभाव पड़ता है । प्राण के अनियंत्रित होने से हमारा मन अनियंत्रित हो जाता है । और प्राण के नियंत्रित होते ही मन भी नियंत्रण में आ जाता है ।

 

प्राण व मन के इसी सम्बन्ध के विषय में हठप्रदीपिका में स्वामी स्वात्माराम कहते हैं कि जैसे ही वात अर्थात प्राण चलता है वैसे ही मन भी उसके साथ- साथ चलता है । और जैसे ही वात अर्थात प्राण की गति रुकती है वैसे ही मन की गति भी उसके साथ ही रुक जाती है* ।

 

 

इस प्रकार मन पर पूरा नियंत्रण आने पर साधक में अपने मन को कहीं पर भी एकाग्र या स्थिर करने की योग्यता आ जाती है । इससे योगी साधक जहाँ चाहे वहीं पर अपने मन को धारण कर सकता है बिना किसी बाधा के ।

 

अतः प्राणायाम करने से साधक में  अपने मन को कहीं पर भी धारण अर्थात एकाग्र करने की काबलियत आ जाती है । यह प्राणायाम का दूसरा लाभ है ।

 

*  चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत् ।  ( ह०प्र० 2/2 )

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  1. ?Prnam Aacharya ji! Thank you so much for explaining a sharp concentration through Pranayama …. Dhanyavad Aacharya ji ??

  2. ॐ गुरुदेव*
    आपका बहुत बहुत आभार ।

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