जातिदेशकालसमयानवच्छिन्ना: सार्वभौमा महाव्रतम् ।। 31 ।।
शब्दार्थ :- जाति ( कोई प्राणी विशेष ) देश ( कोई स्थान विशेष ) काल ( कोई पर्व या तिथि विशेष ) समय ( कोई अवसर विशेष ) अनवच्छिन्ना: ( इन सब बाधाओं से रहित ) सार्वभौमा: ( सभी परिस्थितियों में पालन करने के योग्य ) महाव्रतम् ( ये महाव्रत हैं । )
सूत्रार्थ :- ये अहिंसा आदि महाव्रत सभी जाति विशेष, स्थान विशेष, पर्व या तिथि विशेष व किसी भी अवसर विशेष आदि बाधाओं से रहित सभी परिस्थितियों में पालन करने योग्य होने से महाव्रत कहलाते हैं ।
व्याख्या :- इस सूत्र में यमों का पालन सभी अवस्थाओं में करने योग्य बताया गया है ।
ऊपर वर्णित सभी यम तभी महाव्रत कहलाते हैं । जब बिना किसी जाति, स्थान, काल व समय के बन्धन के सभी अवस्थाओं में इनका पालन समान रूप से किया जाए । इन विशेष अवस्थाओं का वर्णन इस प्रकार है –
- जाति की सीमा से रहित :- जाति का अर्थ है कोई भी जीव या प्राणी जैसे – मनुष्य, पशु व पक्षी आदि । जब कोई व्यक्ति यह कहे कि मैं तो केवल पशुओं पर हिंसा करता हूँ, मनुष्यों पर नहीं । तो यह जाति विशेष अहिंसा कहलाती है । जबकि अहिंसा किसी जाति विशेष पर आधारित नहीं होनी चाहिए । अहिंसा का पालन सभी प्राणियों पर समान रूप से करना चाहिए । उसमें किसी भी प्रकार की जाति का बन्धन नहीं होना चाहिए । ठीक इसी प्रकार सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह का पालन भी जाति विशेष से रहित अर्थात सभी जातियों ( प्राणियों ) के साथ एक समान भाव से होना चाहिए ।
- देश की सीमा से रहित :- देश का अर्थ किसी स्थान विशेष से है । जैसे कोई व्यक्ति यह कहे कि मैं हरिद्वार, बद्रीनाथ या किसी अन्य पुण्य स्थल पर हिंसा नहीं करता हूँ, बाकी सभी स्थानों पर करता हूँ । तो यह देश विशेष अहिंसा कहलाती है । जबकि अहिंसा का पालन तो सभी स्थानों पर समान रूप से होना चाहिए । उसके पालन में किसी प्रकार के स्थान को आधार नहीं बनाना चाहिए । ठीक इसी प्रकार सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह का पालन भी स्थान विशेष से रहित अर्थात सभी स्थानों पर एक समान रूप से होना चाहिए ।
- काल की सीमा से रहित :- काल का अर्थ किसी दिन या पर्व विशेष से है । जब कोई व्यक्ति यह कहे कि मैं पूर्णमासी या अमावस्या जैसे पावन पर्व पर हिंसा नहीं करता हूँ, बाकी सभी दिनों में मैं हिंसा करता हूँ । तो यह काल पर आधारित अहिंसा कहलाती है । जबकि हमें सभी दिनों में समान रूप से अहिंसा का पालन करना चाहिए । उसके पालन में किसी दिन विशेष को आधार बनाया जाना सही नहीं है । ठीक इसी प्रकार हमें सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह का पालन भी काल की सीमा से रहित अर्थात सभी कालों में एक समान भाव से करना चाहिए ।
- समय की सीमा से रहित :- समय का अर्थ किसी अवसर विशेष से है । जब कोई व्यक्ति यह कहे कि मैं अपने किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हिंसा करता हूँ । जैसे- जब कोई मेरे साथ अन्याय करता है, मैं तभी हिंसा करता हूँ । बाकी अन्य समय पर नहीं करता हूँ । यह समय विशेष पर आधारित अहिंसा होती है । जबकि अहिंसा का पालन समय की सीमा से परे अर्थात सभी समय होना चाहिए । हिंसा करने के लिए किसी अवसर को आधार नहीं बनाया जा सकता । ठीक इसी प्रकार सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह का पालन भी हमें समय की सीमा से रहित अर्थात सभी समय एक समान रूप से करना चाहिए ।
इस प्रकार अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह का पालन किसी भी प्रकार की परिस्थिति या अवस्था के आधार पर नहीं करना चाहिए । बल्कि सभी परिस्थितियों व अवस्थाओं में इनका पालन समान रूप से करना चाहिए । तभी यह अहिंसा आदि यम महाव्रत कहलाते हैं ।
Thank you so much sir??
बहुत बहुत धन्यवाद गुरु जी
?Prnam Aacharya ji! Dhanyavad for this moral lesson! Good will should be fallow beyond any circumstances. Om?
Sat,sat namn guru ji
Thanks
ॐ गुरुदेव*
सच में यमों का पालन सभी जाति,देश,काल व ,समय की सीमा में बंधकर नहीं अपितु मुक्त हो कर करना चाहिए,तभी सही मायने में हम अहिंसा के ब्रत का पालन कर पाएंगे तथा आत्मिन्नति के शिखर को प्राप्त कर विश्व का कल्याण कर पाएंगे ।
When we will follow Yama in all condition then will successful in life.
When we will follow Yama in all condition then will successful in life guru ji.
Thanks sir
Thank you sir