स्वस्वामिशक्त्यो: स्वरूपोपलब्धिहेतु: संयोग: ।। 23 ।।

 

शब्दार्थ :- स्व शक्त्यो:, ( प्रकृत्ति ) स्वामि शक्त्यो:, ( पुरुष ) स्वरूपोपलब्धि, ( स्वरूप की प्राप्ति का ) हेतु:, ( कारण ही ) संयोग:, ( संयोग अर्थात जुड़ाव है । )

 

सूत्रार्थ :- प्रकृत्ति और उस पुरूष के स्वरूप की प्राप्ति के लिए ही इनका संयोग अर्थात जुड़ाव हुआ है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में प्रकृत्ति व पुरुष के संयोग से प्राप्त होने वाले फल की चर्चा की गई है ।

सूत्र में जो स्व शब्द है वो प्रकृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है । और स्वामी शब्द पुरूष का प्रतिनिधित्व करता है । इन दोनों के संयोग से ही यह सृष्टि चलायमान है ।

 

इन दोनों ( प्रकृत्ति व पुरुष ) के संयोग के मुख्य दो उद्देश्य हैं- पहला भोग की प्राप्ति करना और दूसरा मोक्ष की प्राप्ति करना ।

 

जब अज्ञानता के कारण मनुष्य अपनी इन्द्रियों के जाल में फसकर विषय – भोगों में ही लगा रहता है । तो यह भोग कहलाता हैं । लेकिन जैसे ही पुरूष को अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होता है । वैसे ही  वह ईश्वर साक्षात्कार द्वारा मुक्ति को प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष का स्वरुप कहलाता है ।

 

उदाहरण स्वरूप :- जिस प्रकार शिक्षा प्राप्ति के दो उद्देश्य माने जाते हैं – एक अच्छा रोजगार प्राप्त करना और दूसरा शिक्षा के द्वारा स्वंम के अंधकार को मिटाकर दूसरों के भी अंधकार को मिटाना ।

कुछ व्यक्ति शिक्षा को इसीलिए ग्रहण करते हैं जिससे उनकी रोजी- रोटी चल सके । अर्थात वह शिक्षा के माध्यम से एक अच्छा रोजगार प्राप्त कर सकें । यह शिक्षा का भोग वाला प्रयोजन होता है । जिनकी उत्पत्ति अज्ञानता के कारण होती है । और दूसरा उद्देश्य शुद्ध ज्ञान पर आधारित होता है । क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं होता है । बल्कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य तो यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति करके स्वंम का व दूसरों का अज्ञान दूर करना होता है । यह शिक्षा का अपवर्ग अर्थात मोक्षकारक उद्देश्य होता है ।

 

ठीक इसी प्रकार इस सृष्टि के भी दो उद्देश्य होते हैं । और दोनों ही उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए यह सृष्टि सभी को समान अवसर प्रदान करती है । वो तो पुरूष के विवेक के ऊपर है कि वह अज्ञानता में फसकर विषय भोगों में उलझा रहे । या फिर शुद्ध सात्त्विक ज्ञान के द्वारा अपने वास्तविक स्वरूप को समझकर मुक्ति को प्राप्त करे ।

 

प्रकृत्ति व पुरुष दोनों के संयोग अर्थात जुड़ाव का कारण उस पुरुष के स्वरूप की उपलब्धि ही है । जब प्रकृत्ति और पुरुष का जुड़ाव मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति के लिए होता है, तो ही मनुष्य का प्रयोजन ( उद्देश्य ) सिद्ध होता है । अन्यथा तो वह ( पुरूष ) ऐसे ही अलग- अलग योनियों में जन्म लेकर भटकता रहता है ।

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  1. महत्वपूर्ण, उत्तम , उत्कृष्ट ज्ञान ,,,, हार्दिक आभार आचार्य जी

  2. ?Prnam Aacharya ji! This Sutra tells us the real destinations of every soul and which one is marvellously elaborated by you Aacharya ji! Dhanyavad! ?

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