द्रष्ट्टदृश्ययो: संयोगो हेयहेतु: ।। 17 ।।
शब्दार्थ :- द्रष्ट्ट, ( देखने वाला अर्थात पुरुष ) दृश्ययो:, ( प्रकृत्ति का ) संयोग:, ( मिलाप / मिलना ) हेय, ( त्यागने का ) हेतु:, ( कारण है । )
सूत्रार्थ :- जीवात्मा और प्रकृत्ति का आपस में जो अज्ञानता पूर्ण सम्बन्ध है वह त्यागने योग्य ही दुःख का कारण है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में दुःख की उत्पत्ति के कारण का वर्णन किया गया है । यहाँ पर दो अलग- अलग व स्वतंत्र तत्त्वों अर्थात प्रकृत्ति व पुरूष का वर्णन किया गया है । प्रकृत्ति को दृश्य और पुरुष को दृष्टा माना जाता है । दृष्टा का अर्थ है जो देखे और दृश्य का अर्थ है जो दिखे । देखने का कार्य तो उस जीवात्मा का अर्थात पुरूष का होता है । और दृश्य हमेशा बुद्धि द्वारा किया जाता है । बिना बुद्धि के हम किसी को देख नहीं सकते । बुद्धि नामक तत्त्व प्रकृत्ति का का अभिन्न अंग है । इसलिए दृश्य प्रकृत्ति को माना जाता है ।
जब उपर्युक्त वर्णन से हमें यह पता चल रहा है कि यह दोनों अलग- अलग तत्त्व हैं । तो इनको एक मानने की भूल करने से दुःख का उत्पन्न होना स्वभाविक है । बुद्धि अनुभव करवाने वाली होती है और पुरूष अनुभव करने वाला । अतः अनुभव के
करवाने वाले व अनुभव करने वाले में अन्तर साफ दिख रहा है ।
जैसे- हम किसी भी प्रकार के खट्टे या मीठे पदार्थ के स्वाद का अनुभव जिह्वा ( जीभ ) द्वारा करते हैं । लेकिन उस स्वाद का अनुभव तो व्यक्ति ही करता है । जिह्वा तो केवल वह साधन है जिसके द्वारा हमें उसके स्वाद का ज्ञान होता है । पुरुष वह विशेष तत्त्व है जिसे सभी तत्त्वों के विषयों का अनुभव होता है ।
बुद्धि जड़ पदार्थ है जिसकी अपनी कोई सत्ता नहीं होती । लेकिन पुरुष चेतन है जिसकी अपनी सत्ता है । इसलिए किसी गलत ज्ञान के द्वारा जब हम दृष्टा ( पुरुष ) व दृश्य ( प्रकृत्ति) का आपस में संयोग अर्थात सम्बन्ध समझते हैं । तो यह स्थिति ही दुःख का कारण बनती है ।
इसको त्यागना ही हेयहेतु कहलाता है । हेय का अर्थ ही त्यागने योग्य है । अर्थात जिसको टाला जा सके । इसीलिए प्रकृत्ति व पुरूष के अज्ञानता पूर्ण सम्बन्ध को त्यागना ही आने वाले दुःख से बचने का उपाय है ।
Thanku sir?
Nice explanation about soul and parkarti relationship guru ji.
बहुत खूब गुरु जी
Parnam guru ji
And thanks
नमो नमः sir अतिउत्तम जी सभी इंद्रियां जड़ है और उसे हम अज्ञानता वश चेतन मान लेते है जो दुख का हेतु बनता है।
Thank you sir
प्रणाम आचार्य जी! इस सुंदर सुत्र के स्पष्ट ज्ञान से हमारी जीवन के अंधकारमय दुःख को दुर कर सत्य आधारित पवित्र जीवन जीने के इस शुभ माग॔दश॔न को प्रदान करने के लिए आपको कोटि-कोटि प्रणाम गुरु देव जी!