कपालभाति क्रिया व लाभ

 

भस्त्रावल्लोहकारस्य रेचपूरौ ससंभ्रमौ ।

कपालभातिर्विख्याता कफदोषविशोषणी ।। 36 ।।

 

भावार्थ :- लोहार की धौकनी की तरह श्वास को तेज गति के साथ आवाज करते हुए अन्दर व बाहर करना कपालभाति कहलाता है । इसके अभ्यास से सभी प्रकार के कफ दोष नष्ट हो जाते हैं ।

 

विशेष :- कपालभाति के बारे में लोगों के बीच बहुत सी भ्रान्त धारणाएँ बनी हुई हैं । हम यहाँ पर प्रयास करेंगे कि उन सभी का निदान कर पाएँ । कपालभाति को कुछ व्यक्ति प्राणायाम का अंग भी मानते हैं तो वहीं कुछ लोग इसे षट्कर्म का अंग मानते हैं । ये दोनों ही धारणाएँ अपने स्थान पर सही हैं । हठयोग आचार्यों की बात करें तो कपालभाति एक षटकर्म का अंग है । जिसकी अलग – अलग विधि का वर्णन हमें अलग- अलग ग्रन्थों में मिलता है । हठप्रदीपिका में कपालभाति की विधि अलग प्रकार से बताई गई है और इसके कोई अन्य प्रकार नहीं बताए हैं । वहीं घेरण्ड संहिता में कपालभाति की अलग विधि का वर्णन किया गया है और वहाँ पर उसके तीन प्रकार ( वातक्रम, व्युत्क्रम व शीतक्रम ) बताए हैं ।

इससे पता चलता है कि अलग – अलग विधि ही सही लेकिन हठयोग आचार्यों ने इसे शुद्धि क्रिया का अंग ही माना है । लेकिन आधुनिक युग की हम बात करें तो योग ऋषि स्वामी रामदेव ने कपालभाति को प्राणायाम के रूप में माना है । वह अपने प्राणायाम के क्रम का आरम्भ कपालभाति से ही शुरू करते हैं । उपर्युक्त कारणों से कपालभाति के बारे में बहुत सारी भ्रान्तियाँ लोगों के बीच बनी हुई हैं । अतः हठयोग आचार्यों ( स्वामी स्वात्माराम, महर्षि घेरण्ड ) के अनुसार कपालभाति एक शुद्धि क्रिया है और स्वामी रामदेव के अनुसार यह एक प्राणायाम का अंग है । इसके अलावा इन सभी के अनुसार कपालभाति की विधि भी अलग- अलग है ।

 

 

षट्कर्म से मोटापा, कफ व मल शुद्धि

 

षट्कर्मनिर्गतस्थौल्यकफदोषमलादिक: ।

प्राणायामं तत: कुर्यादनायासेन सिद्धयति ।। 37 ।।

 

भावार्थ :- षट्कर्म के अभ्यास द्वारा मोटापा, कफ विकार, व शरीर के अन्य दोष आदि को दूर करने के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए । इस प्रकार प्राणायाम का अभ्यास करने से साधक को प्राणायाम में आसानी से सिद्धि प्राप्त हो जाती है ।

 

विशेष :- प्राणायाम का अभ्यास षट्कर्म के बाद ही करने का निर्देश दिया गया है । ताकि प्राणायाम करते हुए सहजता से सिद्धि प्राप्त हो सके ।

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