भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ

 

वातपित्तश्लेष्महरं शरीराग्निविवर्धनम् ।। 65 ।।

 

भावार्थ :- भस्त्रिका प्राणायाम करने से साधक के सभी वात, पित्त व कफ से सम्बंधित सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और जठराग्नि प्रदीप्त ( मजबूत ) हो जाती है ।

 

कुण्डलीबोधकं क्षिप्रं पवनं सुखदं हितम् ।

ब्रह्मनाडीमुखेसंस्थकफाद्यर्गलनाशनम् ।। 66 ।।

 

भावार्थ :- भस्त्रिका प्राणायाम सुषुम्ना नाड़ी के मुख पर जमा कफ आदि मलों को दूर करता है । जिसके कारण शरीर का हित करने व सुख पहुँचाने वाली प्राणवायु सुगमता से सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करके कुण्डलिनी को जागृत करने का काम करती है ।

 

सम्यग्गात्रसमुद्भूतग्रन्थित्रयविभेदकम् ।

विशेषेणैव कर्तव्यं भस्त्राख्यं कुम्भकं त्विदम् ।। 67 ||

 

भावार्थ :- यह भस्त्रिका नामक प्राणायाम शरीर में स्थित तीनों ग्रन्थियों ( ब्रह्मग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि और रुद्रग्रन्थि ) का भली प्रकार से भेदन अर्थात उनको खोलने का काम करता है । इसलिए भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास सभी साधकों को विशेष रूप से करना चाहिए ।

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