षट्कर्म का अभ्यास कौन करे ?

 मेद:श्लेष्माधिक: पूर्वं षट्कर्माणि समाचरेत् ।

अन्यस्तु नाचरेत्तानि दोषाणां समभावत: ।। 21 ।।

 

भावार्थ :- जिन व्यक्तियों के शरीर में चर्बी अर्थात मोटापा और कफ ज्यादा है उनको पहले आगे कही जाने वाली छ: शुद्धि क्रियाओं का अच्छे से अभ्यास करना चाहिए । इसके अलावा जिन व्यक्तियों के वात, पित्त व कफ नामक तीनों दोष सम अवस्था में हैं । उनको इन छ: शुद्धि क्रियाओं का अभ्यास नहीं करना चाहिए । या उनको इनके अभ्यास की कोई आवश्यकता नहीं है ।

 

 षट्कर्म / छ: शुद्धि क्रियाएँ

 

धौतिर्बस्तिस्तथा नेति: त्राटकं नौलिकं तथा ।

कपालभातिश्चैतानि षट् कर्माणि प्रचक्षते ।। 22 ।।

 

भावार्थ :- धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि तथा कपालभाति इन छ: शुद्धि क्रियाओं को षट्कर्म कहा जाता है ।

 

क्रियाओं की गोपनीयता एवं महत्त्व

 

कर्मषट्कमिदं गोप्यं घटशोधनकारकम् ।

विचित्रगुणसंधायि पूज्यते योगिपुङ्गवै: ।। 23 ।।

 

भावार्थ :- यह घट रूपी शरीर को शुद्ध करने वाली व आश्चर्यजनक परिणाम प्रदान करने वाली छ: शुद्धि क्रियाओं को गुप्त रखना चाहिए । इसीलिए योगी पुरुषों द्वारा इन सभी शुद्धि क्रियाओं का बहुत आदर- सम्मान किया जाता हैं ।

Related Posts

November 19, 2018

प्राणायाम के तीन प्रमुख अंग   प्राणायामस्त्रिधा प्रोक्तो रेचपूरककुम्भकै: । सहित: केवलश्चेति कुम्भको द्विविधो ...

Read More

November 18, 2018

भ्रामरी प्राणायाम विधि व लाभ   वेगाद् घोषं पूरकं भृङ्गनादम् भृङ्गीनादं रेचकं मन्दमन्दम् । ...

Read More

November 18, 2018

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ   वातपित्तश्लेष्महरं शरीराग्निविवर्धनम् ।। 65 ।।   भावार्थ :- भस्त्रिका ...

Read More

November 14, 2018

भस्त्रिका प्राणायाम से पहले पद्मासन की स्थिति   ऊर्वोरूपरि संस्थाप्य शुभे पादतले उभे । ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}