ध्यान योग वर्णन स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः । प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ।। 27 ।। यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः । विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ।। 28 ।। व्याख्या :- जिसने अपनी इन्द्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर, दृष्टि को दोनों भौहों ( आज्ञा चक्र में ) के बीच में लगाकर, अपने प्राण ( अन्दर जाने …
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- Category: Bhagwad Geeta – 5