ध्यान योग वर्णन स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः । प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ।। 27 ।। यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः । विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ।। 28 ।।     व्याख्या :-  जिसने अपनी इन्द्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर, दृष्टि को दोनों भौहों ( आज्ञा चक्र में ) के बीच में लगाकर, अपने प्राण ( अन्दर जाने

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Bhagwad Geeta Ch. 5 [27-29]

मोक्ष प्राप्ति   योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः । स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।। 24 ।।     व्याख्या :-  जो व्यक्ति अन्तरात्मा में सुखी होकर, अपने आप में ही आराम अथवा शान्ति को प्राप्त कर लेता है और जिसकी अंतर्ज्योति प्रकाशित हो जाती है, ऐसा योगी ब्रह्मा में स्थित होकर ब्रह्मनिर्वाण अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हो जाता

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Bhagwad Geeta Ch. 5 [24-26]

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्‌ । स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ।। 21 ।।     व्याख्या :-  जो व्यक्ति इन्द्रियों से प्राप्त होने वाले बाह्य पदार्थों के विषयभोग में आसक्ति नहीं रखता और केवल अपनी आत्मा में स्थित सुख को ही जानता है, वह ब्रह्मयोग से युक्त, कभी भी न समाप्त होने वाले सुख को भोगता है ।

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Bhagwad Geeta Ch. 5 [21-23]

“विद्या ददाति विनयम”   विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ।। 18 ।।     व्याख्या :-  जिन ज्ञानीजनों ने विद्या से प्राप्त होने वाले विनय को प्राप्त कर लिया है, वे ज्ञानीजन ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता व चाण्डाल आदि सभी प्राणियों में एक समान दृष्टि रखते हैं अर्थात् वह

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Bhagwad Geeta Ch. 5 [18-20]

मानव शरीर में स्थित नव द्वार   सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी । नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्‌ ।। 13 ।।     व्याख्या :-  सभी कर्मों में मन द्वारा सन्यास अथवा सांख्ययोग का पालन करने वाला पुरुष नवद्वारों वाले ( नौ द्वारों वाले ) शरीर रूपी नगर में बिना कर्म किये व करवाएं

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Bhagwad Geeta Ch. 5 [13-17]

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्‍गं त्यक्त्वा करोति यः । लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ।। 10 ।।     व्याख्या :-  जो व्यक्ति आसक्ति का त्याग करके अपने सभी कर्मों का ब्रह्मा में समर्पण करता है, वह पापों से उसी प्रकार अलिप्त ( अलग ) रहता है जिस प्रकार कमल के पत्ते कीचड़ अथवा पानी से अलिप्त

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Bhagwad Geeta Ch. 5 [10-12]

कर्मों में अलिप्तता   योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ।। 7 ।।     व्याख्या :-  जो कर्मयोगी योगयुक्त हो गया है, जिसका अन्तःकरण ( मन, बुद्धि, अहंकार व चित्त ) शुद्ध हो गया है, जिसने अपनी इन्द्रियों पर अधिकार प्राप्त कर लिया है अथवा जिसने अपनी इन्द्रियों को पूर्ण रूप

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Bhagwad Geeta Ch. 5 [7-9]