“विद्या ददाति विनयम”

 

विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ।। 18 ।।

 

 

व्याख्या :-  जिन ज्ञानीजनों ने विद्या से प्राप्त होने वाले विनय को प्राप्त कर लिया है, वे ज्ञानीजन ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता व चाण्डाल आदि सभी प्राणियों में एक समान दृष्टि रखते हैं अर्थात् वह ज्ञानी लोग सभी प्राणियों को परमात्मा का ही अंश मानते हुए उनमें किसी प्रकार का भेद नहीं करते ।

 

 

विशेष :- यहाँ पर विद्या व विनय से युक्त ज्ञानीजनों की जो बात कही गई है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण है । हम सभी ने अपने – अपने विद्यालयों में एक श्लोक अवश्य ही पढा होगा- “विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥”


अर्थ :-
विद्या हमें विनय देती है, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है ।

 

इस प्रकार विद्या हमें विनय अथवा विनम्रता सिखाती है, दूसरों के प्रति कठोरता अथवा निष्ठुरता अविद्या का प्रतीक होती है । व्यक्ति के व्यवहार में दूसरों के प्रति कठोरता अथवा निष्ठुरता इस बात का परिचायक है कि उसने विद्या के वास्तविक अर्थ को न समझकर केवल अक्षर ज्ञान ही प्राप्त किया है । विनम्रता हमें ऊँचे व नीचे के भेद को मिटाकर समानता का सन्देश देती है । इसी श्लोक के आधार पर गीता के इस श्लोक में कहा गया है कि जिन ज्ञानीजनों ने विद्या- विनय को प्राप्त कर लिया है, वह सभी प्राणियों को एक समान दृष्टि से देखते हैं ।

 

 

समभाव से युक्त स्थिति

 

 

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ।। 19 ।।

 

 

व्याख्या :-  जिन मनुष्यों का मन समभाव ( साम्यावस्था ) से युक्त है, वे मनुष्य इसी जीवन काल में अपनी मृत्यु पर विजय प्राप्त करके जीवन से मुक्त हो जाते हैं । क्योंकि स्वयं ब्रह्मा भी निर्दोष व सम अवस्था से युक्त है, इसलिए यह समभाव से युक्त मनुष्य भी उस समभाव ब्रह्मा में स्थित होकर ब्रह्म को ही प्राप्त हो जाते हैं ।

 

 

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम्‌ ।
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः ।। 20 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो व्यक्ति अपनी प्रिय ( पसन्द ) की वस्तु को प्राप्त करके हर्षित ( ज्यादा खुश ) नहीं होता और अप्रिय ( नापसन्द ) वस्तु को प्राप्त करके उद्विग्न ( दुःखी ) नहीं होता है, जिसकी बुद्धि स्थिर है, जो कभी मोह में नहीं फँसता, जो ब्रह्म को जानता है, वही मनुष्य ब्रह्मा में स्थित होता है ।

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  1. ॐ गुरुदेव!
    आपका हृदय से परम आभार प्रेषित करता हूं।

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