ध्यान योग वर्णन
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः ।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ।। 27 ।।
यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः ।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ।। 28 ।।
व्याख्या :- जिसने अपनी इन्द्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर, दृष्टि को दोनों भौहों ( आज्ञा चक्र में ) के बीच में लगाकर, अपने प्राण ( अन्दर जाने वाली श्वास ) व अपान ( बाहर जाने वाली श्वास ) को सन्तुलित कर लिया है ।
जिसने अपने मन, बुद्धि व इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में कर लिया है, जो इच्छा, भय और क्रोध से मुक्त हो गया है, इस प्रकार ध्यान करने वाला मोक्षपरायण मुनि सभी दुःखों अथवा कष्टों से सदा मुक्त रहता है ।
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ।। 29 ।।
व्याख्या :- जो मनुष्य मुझे ( परमात्मा को ) सभी यज्ञों व तपों का भोक्ता अर्थात् भोगने वाला, सभी लोकों का स्वामी और सभी प्राणियों का मित्र समझता है, वही शान्ति को प्राप्त करता है ।
ॐ गुरुदेव!
अति सुंदर व्याख्या । आपको हृदय से परम आभार।
Thank you sir
Guru ji nice explain to get santi.
Thanks ji, parnam ji