क्रमान्यत्वं परिणामान्यत्वे हेतु: ।। 15 ।।

शब्दार्थ :- क्रम ( क्रम ) अन्यत्वम् ( भिन्नता या अन्तर ) परिणाम ( फल या नतीजा ) अन्यत्वे ( भिन्नता या अन्तर ) हेतु ( कारण या वजह )

सूत्रार्थ :- क्रम की भिन्नता के कारण ही धर्मी के अलग- अलग परिणाम होते हैं ।

व्याख्या :- इस सूत्र में क्रम की भिन्नता को परिणाम की भिन्नता का कारण बताया गया है ।

यहाँ धर्मी के परिणाम की बात कही गई है । सामान्य रूप से एक धर्मी अर्थात किसी वस्तु का जो आधार होता है उनका एक ही परिणाम होना चाहिए । परन्तु जब उस धर्मी का क्रम अर्थात अवस्था बदलती है तब उसका परिणाम भी साथ ही बदल जाता है ।

इस प्रकार क्रम के बदलने से धर्मी का परिणाम ( अवस्था ) भी बदल जाता है ।

जैसे- मिट्टी धर्मी है अर्थात मिट्टी का आधार ठोस है । लेकिन जैसे ही उस मिट्टी को हम पीसकर बारीक बना देते हैं , तब उसका क्रम ठोस से बारीक में बदल जाता है । उसके बाद उस मिट्टी के चूर्ण में यदि पानी मिला दिया जाए तो वह एक पिण्ड का आकार ले लेती है । उस मिट्टी के पिण्ड को जब कुम्हार चाक पर गोल- गोल घुमाकर उसे एक घड़े का रूप दे देता है । इस प्रकार वह मिट्टी का ठोस अंश पहले बारीक हुआ, फिर वह पानी के मिश्रण से एक पिण्ड बना । उसके बाद कुम्हार ने चाक की सहायता से उसे घड़े का रूप दे दिया । इस प्रकार एक मिट्टी का कुछ भाग अलग- अलग क्रम से होता हुआ घड़ा जा बना । जैसे ही मिट्टी का क्रम बदला वैसे ही उसका परिणाम भी उसके साथ- साथ बदलता रहा । इस क्रम के बदलने से ही मिट्टी का एक भाग घड़ा बन जाता है । उसके बाद भी वह क्रम निरन्तर बदलता ही रहता है । और एक दिन जब वह घड़ा गलकर पुनः मिट्टी का रूप धारण कर लेता है । तो पुनः क्रम के बदलने से उसका परिणाम भी बदल गया ।

ठीक इसी प्रकार हमारा शरीर भी अलग- अलग क्रम से होता हुआ अलग- अलग परिणाम अर्थात अवस्था को प्राप्त होता है । जन्म के समय बच्चा बहुत छोटा होता है । उस समय उसे नवजात कहा जाता है । जैसे ही वह स्कूल जाने लगता है वह उसका बाल्यकाल कहलाता है । स्कूल की पढ़ाई पूरी होने पर वह कॉलेज जाता है तब वह युवा कहलाता है । जैसे ही उसकी नौकरी लगती है वैसे ही उसकी शादी हो जाती है । ( हमारे देश में  शादी होने के लिए ज्यादातर नौकरी का होना अनिवार्य माना जाता है ) शादी के बाद वह एक पुरुष की श्रेणी में आ जाता है । और धीरे – धीरे जब उसके बच्चे बड़े होन लगते हैं तो वह उम्रदराज कहलाने लगता है । फिर बुढ़ापा और उसके बाद मुक्ति । इस प्रकार एक नवजात ( शिशु ) अलग- अलग क्रम से होता हुआ अलग- अलग परिणाम ( अवस्था ) वाला बन जाता है । जैसे जैसे उसका क्रम बदलता है वैसे वैसे उसका परिणाम बदलता रहता है ।

अतः इस सूत्र में क्रम को ही परिणाम के बदलने का कारण माना गया है ।

https://youtu.be/1WQkSzyuVXg

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  1. ॐ गुरुदेव*
    आपको हृदय से शत शत नमन एवं चरण वंदन।

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