क्षणतत्क्रमयो: संयमाद्विवेकजं ज्ञानम् ।। 52 ।।

 

शब्दार्थ :- क्षण ( छोटे से छोटे समय अर्थात पल  ) तत्क्रमयो: ( उसके क्रम अर्थात विभाग में ) संयमात् ( संयम करने से ) विवेकजं ( विवेक से उत्पन्न ) ज्ञानम् ( ज्ञान की उत्पत्ति होती है )

 

  

सूत्रार्थ :- छोटे से छोटे समय अर्थात पल के क्रम ( विभाग ) में संयम करने से योगी में विवेक से उत्पन्न ज्ञान की उत्पत्ति होती है ।

 

व्याख्या :-  इस सूत्र में क्षण ( पल ) के विभाग में संयम करने के फल को बताया गया है ।

 

छोटे से छोटे द्रव्य अर्थात पदार्थ को परमाणु कहते हैं । अर्थात ऐसा द्रव्य या पदार्थ जिसके और टुकड़े न हो सकें । जिसको और भागों में न बाटा जा सके । जैसे पत्थर के एक टुकड़े को इतना तोड़ा या काटा जाए कि उसके और टुकड़े ही न हो पाएं । ऐसे पत्थर के टुकड़े को हम रेत कहते हैं । उस रेत के और विभाग नहीं किए जा सकते ।

 

इसी प्रकार समय का वह छोटे से छोटा भाग जिसे और किसी भाग में न बाटा जा सके वह क्षण कहलाता है । जैसे- वर्षों को महीनों में, महीनों को दिनों में, दिनों को घण्टों में, घण्टों को मिनटों में, मिनटों को सेकंड में और सेकंड को प्वाइंट में बाटा जा सकता है । अर्थात इन सभी के विभाग किए जा सकते हैं । परन्तु प्वाइंट का कोई विभाग नहीं किया जा सकता ।

 

इसी प्वाइंट को क्षण अथवा पल कहा जाता है । इन क्षणों अथवा पलों के निरन्तर चलने वाले प्रवाह को उनका क्रम कहा जाता है । यह क्रम निर्बाध ( बिना किसी रुकावट के ) गति से चलता रहता है ।

 

जैसे ही किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है तो वह हमें नई लगती है । जैसे – कोई कपड़ा या अन्य कोई वस्तु । लेकिन वह नया पदार्थ प्रत्येक क्षण पुराना होता जाता है । एक लम्बे समय के बाद अर्थात निरन्तर क्षणों के क्रम के बीतने से वह वस्तु नष्ट हो जाती है । यह सब पलों का खेल होता है ।

 

क्षणों का प्रभाव उन्हीं पदार्थों पर होता है जिनकी उत्पत्ति ( जो पैदा होते हैं ) होती है । क्षण का प्रभाव आत्मा और परमात्मा पर नहीं होता ।

 

जब योगी इन क्षणों ( पलों ) के क्रम ( विभाग ) में संयम कर लेता है तो उसे विवेक ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

 

विवेक ज्ञान को समझने के लिए हमें पहले विवेक को समझना चाहिए । विवेक का अर्थ है सही और गलत, सत्य और असत्य में भेद करना । इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार से समझा जा सकता है कि वह जानकारी या वह ज्ञान जो हमें सही व गलत और सच और झूठ के बीच का अन्तर समझाए वह विवेक होता है ।

 

योगी द्वारा क्षण के क्रम में संयम करने से विवेक से उत्पन्न हुए ज्ञान की प्राप्ति होती है । जिसे वास्तविक ज्ञान कहा जाता है ।

 

इस विवेक ज्ञान के प्राप्त होने से मिलने वाले लाभ की चर्चा अगले सूत्र में की गई है ।

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  1. bahut badia….iske abhyas se samay k sadupyog,time management etc.labh milna bhi tay h.. samay pr pakad banana aaj ki bhagadaudi ki jindagi m avshyak..

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