स्वरसवाही विदुषोऽपि तथारुढोऽभिनिवेश: ।। 9 ।।
शब्दार्थ :- स्वरसवाही, ( जो परम्परागत अर्थात पीढ़ियों से स्वभाविक रूप से चला आ रहा है ) विदुष, ( विद्वानों में ) अपि, ( भी ) तथारुढ:, ( एक समान भाव से विद्यमान अर्थात पाया जाने वाला ) अभिनिवेश, ( मृत्यु अर्थात मौत का डर है )
सूत्रार्थ :- जो मृत्यु अर्थात मरने का डर है । वह परम्परागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी विद्वानों तथा साधारण लोगों में समान रूप से देखा जा सकता है । यही मृत्यु का डर अभिनिवेश नामक अन्तिम क्लेश है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में अन्तिम क्लेश अर्थात अभिनिवेश के स्वरूप को दर्शाया गया है । सभी मनुष्य स्वभाविक रूप से बहुत सारी बातों में एक जैसे होते हैं । जैसे उनके शरीर की आकृति, उनका खाना खाने का तरीका, सांस लेने का तरीका आदि । इस प्रकार प्रत्येक इंसान में समानता है । ऐसी ही एक अन्य समानता भी सभी मनुष्यों में पीढ़ियों से स्वभाविक रूप से चली आ रही है । वह है मृत्यु का भय अर्थात मरने से डरना ।
सभी मनुष्य अलग- अलग लोगों से प्यार करते हैं । अलग- अलग चीजें उनको पसन्द होती हैं । सभी अलग- अलग तरह की पोशाक ( ड्रेस ) व भोजन को पसन्द करते हैं । कोई किसी इन्सान से ज्यादा तो कोई किसी से कम प्यार करता है । लेकिन एक वस्तु या पदार्थ ऐसा है जिससे सभी व्यक्ति बेहद या सबसे ज्यादा प्यार करते हैं । वह कुछ और नहीं बल्कि हमारा प्राण ( सांस ) ही है । और जब यह शरीर से निकलता है तो सबसे ज्यादा कष्ट होता है ।
आप सभी अब विचार करके देखो की क्या कोई व्यक्ति ऐसा है जिसे अपने प्राण अर्थात अपने जीवन से प्यार नहीं है ? आपका उत्तर नहीं में ही आएगा । क्योंकि सभी जीवधारी चाहे वह मनुष्य हो या जानवर सभी को अपनी – अपनी जिन्दगी बहुत प्यारी होती है । और यदि किसी कारण से हमें लगे कि अब हमारी मृत्यु होने वाली है, तो हम बेचैन हो उठते हैं । उस समय दुनिया की कोई भी अच्छे से अच्छी वस्तु हमें अच्छी नहीं लगती है । क्योंकि बिना जीवन के हम उसका आनन्द नहीं ले सकते हैं ।
और यह घटनाक्रम आज से ही नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है । राजा हो या रंक, धनवान हो या गरीब, छोटा हो या बड़ा, स्त्री हो या पुरुष सभी मृत्यु रूपी भय से भयभीत होते हैं । यहाँ इस सूत्र में विद्वानों को भी इस दुःख से पीड़ित बताया गया है । इसका अर्थ ऐसे विद्वानों से है जो सांसारिक रूप से समझदार होते हैं । यह योग की उच्च अवस्था वाले योगी साधक नहीं होते हैं । इसलिए यहाँ पर विद्वजन को इसी प्रकार समझना चाहिए । केवल योग की उच्च अवस्था या स्थिति को प्राप्त योगीजनों को ही मृत्यु का भय नहीं सताता है । बाकी सभी व्यक्ति इस अभिनिवेश नामक क्लेश से पीड़ित होते हैं ।
Thanks
?प्रणाम आचार्य जी! सत्य आधारित इस स्पष्ट व्याख्या के लिए आपका बहुत धन्यवाद आचार्य जी! हरि ओम ! ?
Its true but how to overcome it ???Please explain ??
Very nice bahut sunder arya ji????????
Thank you sir
Thanks guru ji sbko etna sikhane ke liye
Very ossm Dr. Shaab
??Pranaam Sir! So true it is, that we all are afraid to die.
Thanku for increasing our knowledge sir??
really appreciable sir……..keep it up……thanks for it……