दुःखानुशयी द्वेष: ।। 8 ।।

  

शब्दार्थ :- दुःख, ( कष्ट अथवा तकलीफ ) अनुशयी, ( को भोगने के बाद उस दुःख अथवा कष्ट के प्रति क्रोध या उसके नाश की इच्छा का होना ही ) द्वेष, ( द्वेष नामक क्लेश कहलाता है।)

 

सूत्रार्थ :- दुःख या किसी कष्ट को भोगने के बाद उस दुःख के के प्रति उत्पन्न होने वाले आक्रोश को द्वेष नामक क्लेश कहते हैं ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में द्वेष नामक क्लेश का स्वरूप बताया गया है । किसी भी प्रकार के दुःख अथवा तकलीफ को महसूस करने के बाद, उस दुःख व उसके कारण के प्रति क्रोध उत्पन्न होना ही द्वेष नामक क्लेश है ।

 

दुःख मुख्य रूप से तीन प्रकार के माने गए हैं –

 

  1. आध्यात्मिक दुःख
  2. आधिभौतिक दुःख
  3. आधिदैविक दुःख ।

 

  1. आध्यात्मिक दुःख ( दैहिक ) :- आध्यात्मिक दुःख वह दुःख होते हैं जो हमें शारीरिक व मानसिक रूप से कष्ट पहुँचाते हैं । इनको दैहिक दुःख इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह हमारी देह अर्थात शरीर में होते हैं । जैसे – बुखार, सरदर्द, उल्टी- दस्त लगना, बी.पी., मधुमेह आदि रोग होना शारीरिक दुःख हैं । इसी प्रकार मानसिक दुःख भी होते हैं जैसे – चिन्ता, तनाव, अनिद्रा व अवसाद आदि ।

 

  1. आधिभौतिक दुःख :- वह कष्ट या दुःख जो हमें भौतिक पदार्थों से प्राप्त होते हैं आधिभौतिक दुःख कहलाते हैं । जैसे – हिंसक पशुओं या जानवरों द्वारा कष्ट मिलना, सड़क दुर्घटना से मिलने वाला कष्ट आदि ।

 

  1. आधिदैविक दुःख :- वह दुःख या कष्ट जो हमें अलौकिक कारणों से मिलता है आधिदैविक दुःख कहलाता है । जैसे- सर्दी- गर्मी से मिलने वाला कष्ट, अकाल व अत्यधिक वर्षा से मिलने वाला कष्ट, व भूकम्प आदि से मिलने वाला दुःख ।

 

ऊपर वर्णित सभी दुःखों में से जब किसी भी प्रकार का दुःख या कष्ट हमें होता है । तो उस दुःख व उस दुःख के कारण के प्रति क्रोधित होकर उसका नाश करने की कोशिश करते रहते हैं । या उसके नाश की भावना रखते हैं ।

 

उदाहरण स्वरूप :- कई बार ज्यादा तला- भूना या बाहर का भोजन ग्रहण करने के कारण हमें उल्टी व दस्त लग जाते हैं । जिससे हमें कष्ट होता है । उस कष्ट या तकलीफ से पीड़ित होने से हमें हमारा ध्यान उसके कारण पर जाता है । कि यह रोग हमें किस कारण से हुआ है ? उसके पीछे जो भी कारण होता है, हम उसके प्रति क्रोधित हो उठते हैं । और उस कारण का नाश करने का पूरा प्रयास करते हैं । उसके नाश की भावना करना ही द्वेष कहलाता है ।

 

दूसरा हम इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि जब हम अपनी गाड़ी से यातायात ( ट्रैफिक ) के नियमों का पालन करते हुए कहीं जा रहे होते हैं । तभी अचानक से कोई दूसरा वाहन गलत दिशा से आकर आपको टक्कर मार देता है । तब आपको उसकी गलती पर बहुत गुस्सा आता है । और आप गुस्से में आकर उसको बुरा- भला कहने लगते हो । या फिर उसके ऊपर हिंसा अर्थात उसको चोट पहुँचाने की कोशिश करते हो । यह गुस्से अथवा क्रोध का भाव ही द्वेष होता है । या कोई व्यक्ति हमें बिना किसी कारण के प्रताड़ित कर रहा होता है, तो उस व्यक्ति के प्रति भी हम क्रोध का भाव रखते हैं । और अवसर ( मौका ) मिलते ही उसको नुकसान पहुँचाने का भी प्रयास करते हैं । यही द्वेष नामक क्लेश होता है ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी! स्पष्ट व्याख्या ! धन्यवाद! ?

  2. Pranaam Sir! ?? In above examples it is very natural to react, is it wrong…..than how will other person realize that he/she is wrong.? How to overcome such feeling?

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