दृग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतेवास्मिता ।। 6 ।।

 

 शब्दार्थ :- दृक्- दर्शन- शक्त्यो:, ( दृक् शक्ति अर्थात जिसके द्वारा देखा जाए – दर्शन शक्ति अर्थात जिस साधन के द्वारा देखा जाए ) इन दोनों की एकात्मता इव ( एकरूपता अर्थात इन दोनों को एक ही समझना ) अस्मिता, ( अस्मिता नामक क्लेश है । )

 

सूत्रार्थ :- जिसके द्वारा देखा जाता है अर्थात पुरुष या मनुष्य व जिसके माध्यम से देखा जाता है अर्थात बुद्धि । इन दोनों को एक ही मानना अस्मिता कहलाती है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में अस्मिता नामक दूसरे क्लेश के स्वरूप को बताया गया है ।

दृक् शक्ति का अर्थ है जिससे द्वारा देखा जाता है वह पुरुष होता है । जो त्रिगुणों ( सत्त्व, रज व तम ) से रहित है व चेतन है वही पुरुष है । इसके विपरीत जिस साधन के द्वारा देखा जाता है अथवा किसी का ज्ञान होता है वह दर्शन शक्ति होती है । वह दर्शन शक्ति बुद्धि होती है । बुद्धि सत्त्व, रज व तम से निर्मित व अचेतन अर्थात जड़ पदार्थ है ।

 

इस प्रकार दृक् शक्ति अर्थात पुरुष और दर्शन शक्ति अर्थात बुद्धि दोनों ही एक – दूसरे के विपरीत हैं । पुरूष चेतन तो बुद्धि अचेतन अर्थात जड़ पदार्थ है । जब व्यक्ति अविद्या के कारण इन दो अलग – अलग पदार्थों में भेद नहीं कर पाता है । और इन दोनों को एक ही तत्त्व मानने की गलती करता है तो यह अस्मिता नामक क्लेश कहलाता है ।

 

इसे हम एक अन्य उदाहरण के द्वारा भी समझ सकते हैं । भोक्ता और भोग्य दोनों अलग- अलग होते है । भोक्ता उसे कहते हैं जो किसी पदार्थ का किसी भी रूप में उपयोग करता है । जैसे- व्यक्ति मोबाइल फोन का उपयोग या प्रयोग करता है । तो इसमें व्यक्ति को भोक्ता अर्थात उपयोग करने वाला कहा जाएगा । क्योंकि मोबाइल फोन तो मात्र वस्तु है जिसका उपयोग मनुष्य द्वारा किया जा रहा है । और इसमें मोबाइल फोन को भोग्य माना जाता है । क्योंकि भोग्य का अर्थ है जिसका उपयोग किया जा रहा है ।

यहाँ पर मोबाइल फोन का उपयोग होने से इसे भोग्य कहा जाता है । लेकिन मनुष्य जब अविद्या के अंधकार में होता है तो उसे भोक्ता ( मनुष्य ) और भोग्य ( मोबाइल फोन ) में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता है ।

इस प्रकार के विपरीत ज्ञान को अस्मिता नामक क्लेश कहा है ।

 

 

 

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