ततो द्वन्द्वानभिघात: ।। 48 ।।
शब्दार्थ :- तत: ( तब अर्थात आसन की सिद्धि होने पर ) द्वन्द्व ( सर्दी – गर्मी ) भूख- प्यास, लाभ- हानि आदि ) अनभिघात ( आघात अर्थात कष्ट नहीं पहुँचाते )
सूत्रार्थ :- आसन के सिद्ध हो जाने पर साधक को सर्दी- गर्मी, भूख- प्यास, लाभ- हानि आदि द्वन्द्व आघात अर्थात कष्ट उत्पन्न नहीं करते हैं ।
व्याख्या :- इस सूत्र में आसन सिद्धि के फल अर्थात लाभ को बताया गया है ।
जब साधक आसन का पूरी तन्मयता व नियम पूर्वक पालन करता है तो उसका आसन अच्छा फल प्रदान करने वाला होता है ।
आसन सिद्धि के फल के रूप में साधक को सभी द्वन्द्वों से मुक्ति मिलती है । अब प्रश्न आता है कि ये द्वन्द्व क्या हैं ?
द्वन्द्व उन सम ( अनुकूल ) और विषम ( प्रतिकूल ) परिस्थितियों को कहते हैं जो साधक को योग मार्ग में बाधा पहुँचाने का काम करती हैं ।
मुख्य रूप से द्वन्द्व यह होते हैं –
सर्दी- गर्मी, भूख- प्यास, लाभ- हानि, सुख- दुःख, मान- अपमान, जय- पराजय आदि ।
जब आसन सिद्ध हो जाता है तो यह द्वन्द्व साधक की योग साधना में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं कर पाते हैं ।
ऊपर वर्णित यह द्वन्द्व सभी व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं । सभी व्यक्ति एक निश्चित सीमा तक ही इन द्वन्द्वों का सामना कर सकते हैं । उसके बाद नहीं । लेकिन एक योगी जिसने आसनों में सिद्धि प्राप्त कर ली है । उसको यह द्वन्द्व नहीं सताते । बाकी सभी को अत्यधिक सर्दी या अत्यधिक गर्मी दोनों ही परेशान करती हैं । इसी प्रकार भूख व प्यास को भी कोई कितनी देर तक रोक सकता है ? इन सभी द्वन्द्वों का हमारे शरीर व मन पर पूरा प्रभाव पड़ता है । जिस प्रकार सर्दी – गर्मी, भूख- प्यास का हमारे शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है । उसी प्रकार सुख- दुःख, लाभ- हानि व मान- अपमान का हमारे मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है । अतः द्वन्द्वों से हमारा शरीर व मन दोनों ही प्रभावित होते हैं ।
योग साधना में शरीर व मन दोनों का ही सही व स्वस्थ होना जरूरी है । तभी हमारी साधना सफल होती है । और यह द्वन्द्व हमारे शरीर व मन दोनों को ही प्रभावित करने का काम करते हैं । अतः इन सभी शारीरिक व मानसिक द्वन्द्वों का स्थायी समाधन करना अति आवश्यक है । इसीलिए आसन की सिद्धि द्वारा हम इन सभी द्वन्द्वों पर विजय प्राप्त करते हैं ।
इस प्रकार इस सूत्र में आसन से मिलने वाले इस अद्भुत लाभ की चर्चा की गई है । अन्य योग ग्रन्थों में तो आसन के सामान्य लाभों का वर्णन मिलता ।
Thanku sir??
?प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर सुत्र! सुन्दर वण॔न! धन्यवाद! ओ3म् ?
ॐ गुरुदेव*
बहुत_ बहुत आभार आपका।
अति सुंदर व्याख्या।
Dhanyawad guru ji
Thank you sir
Pranaam Sir! ??As always you are an inspiration on the path of yoga
Well explained asana,s benefit guru ji.
om guru ji , ye maine randomly yog sutra padhne ke liye net search kiya to aapka ye page dikha to mujhe bahut acha laga. really say thanks to giving such a nice information to us.