स्वाध्यायादिष्टदेवतासम्प्रयोग: ।। 44 ।।
शब्दार्थ :- स्वाध्यायत् ( स्वाध्याय का पालन करने से ) इष्टदेवता ( जिसकी हम आराधना या उपासना करते हैं । ) सम्प्रयोग: ( उसका साक्षात्कार या उससे निकटता हो जाती है । )
सूत्रार्थ :- स्वाध्याय का पालन करने से हमें अपने इष्टदेव या आराध्य देव का साक्षात्कार या उससे अति निकट का सम्बंध हो जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में स्वाध्याय के प्रतिफल को बताया गया है ।
स्वाध्याय का अर्थ होता है मोक्ष प्रदान करवाने वाले ग्रन्थों को पढ़ना, प्रणव आदि मन्त्रों का अर्थ सहित जप करना व स्वयं का अवलोकन करना ।
इस प्रकार जब स्वाध्याय का पालन करता हुआ योगी अपने जिस इष्ट या आराध्य देव का ध्यान करता है, वह उसी अपने इष्ट देव का साक्षात्कार कर लेता है । या उससे उसका अति निकट का सम्बंध स्थापित हो जाता है ।
स्वाध्याय करने वाले साधक को देवता, ऋषि और सिद्ध पुरूष दिखाई देने लगते हैं । और यह सभी साधक के सभी उत्तम कार्यों को करने या उन्हें सफल करने में उसको सहायता प्रदान करते हैं ।
हमारे सभी मोक्ष या मुक्ति प्रदान करवाने वाले ग्रन्थ हमें ईश्वर व मोक्ष के नजदीक लेकर जाते हैं । यह मोक्षकारक ग्रन्थ हमें निरन्तर अंधकार से प्रकाश की तरफ अग्रसर करते रहते हैं । जिससे हम अपने इष्ट देव के पास पहुँच कर उनका आत्म साक्षात्कार कर लेते हैं ।
बिना मोक्षकारक ग्रन्थों के हमें अपने इष्ट अर्थात ईश्वर के स्वरूप का ज्ञान नहीं होता । इसीलिए हम अपने इष्ट या ईश्वर के निकट नहीं पहुँच पाते है । लेकिन जैसे ही साधक स्वाध्याय का पालन करता है वैसे ही उसे अपने इष्ट अर्थात ईश्वर के स्वरूप का भली- भाँति ज्ञान हो जाता है । और फिर वह उसके साथ आत्म – साक्षात्कार कर लेता है । इस प्रकार ईश्वर साक्षात्कार से वह अपने जीवन के अंतिम पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है ।
Prnam Aacharya ji … Thank u