अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासम्बोध: ।। 39 ।।

 

शब्दार्थ :- अपरिग्रह ( अनावश्यक वस्तुओं व विचारों के त्याग की स्थिति ) स्थैर्ये ( स्थिर अथवा सिद्ध होने पर ) जन्म ( जीवन से सम्बंधित ) कथन्ता ( कथा या कहानी ) सम्बोध: ( ज्ञान या जानकारी हो जाती है )

 

सूत्रार्थ :- अनावश्यक वस्तुओं व विचारों का पूरी तरह से त्याग करने पर व्यक्ति को अपने जीवन या जन्म से सम्बंधित धटनाओं की जानकारी हो जाती है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में अपरिग्रह के फल की चर्चा की गई है ।

जब कोई व्यक्ति बुरे या हानिकारक विचारों व वस्तुओं का त्याग करता है, तो उसे उसका प्रतिफल मिलता है । पहले हानिकारक या अनावश्यक को जानना जरूरी है कि यह क्या होते हैं ? हानिकारक या अनावश्यक विचार वह होते हैं जो साधक की योग साधना में बाधा पहुँचाते हैं । जैसे- अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष व अभिनिवेश नामक क्लेश व काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि । यह ऐसे दुर्गुण या बुरे विचार हैं जो साधना को भंग करने का काम करते हैं ।

 

एक साधक को इनसे सदैव बचना चाहिए । जब कोई व्यक्ति या साधक इस तरह के विचारों के संग्रह से पूरी तरह से दूर हो जाता है, तब उसमें विद्या का प्रभाव बढ़ता है । जिससे वह जीवन के वास्तविक स्वरूप को समझने लगता है । इसके बाद वह निरन्तर विरक्ति या वैराग्य की ओर अग्रसर होता रहता है ।

 

इस प्रकार वैराग्य भाव से परिपूर्ण होने पर वह अपने जीवन के विषय में विचार करता है । जिसमें वह सोचता है कि इस जीवन का क्या उद्देश्य है ? मेरा जन्म किस लिए हुआ है, मैं कौन हूँ, मैं पिछले जन्म में क्या था, आगे मुझे क्या जन्म मिलेगा ? इत्यादि ।

 

इन विचारों के उत्पन्न होने और विद्या के सहयोग से उसे इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है । अतः कहा गया है कि जैसे ही अनावश्यक व हानिकारक विचारों का पूरी तरह से त्याग होता है वैसे ही व्यक्ति को अपने जन्म से सम्बंधित सभी घटनाओं की जानकारी हो जाती है ।

Related Posts

July 11, 2018

तत: परमा वश्यतेन्द्रियाणाम् ।। 55 ।। शब्दार्थ :- तत: ( उसके बाद अर्थात प्रत्याहार ...

Read More

July 11, 2018

स्वविषयासम्प्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहार: ।। 54 ।। शब्दार्थ :- स्वविषय ( अपने- अपने विषयों ...

Read More

July 11, 2018

तत: क्षीयते प्रकाशावरणम् ।। 52 ।।   शब्दार्थ :- तत: ( उस अर्थात प्राणायाम ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. Prnam Aacharya ji! Truely said. .. to collect so many things or thought is not appropriate. … we should collect only that much, which we require to survive happily …. thank you Acharya ji!

  2. ॐ गुरुदेव*
    ऐसे ही योग ज्ञान से हम सभी का मागदर्शन करते रहें।
    अपनी कृपा दृष्टि ऐसे ही बनाए रखें।

  3. Pranaam Sir! ?? it is very important to get away with unnecessary thoughts that harm our present…… Rightly said

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}