सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम् ।। 36 ।।

 

शब्दार्थ :- सत्य- प्रतिष्ठायां ( सत्य अर्थात सच के सिद्ध हो जाने पर ) क्रियाफल-आश्रयत्वम् ( योगी के कहे हुए कथनों या वचनों के फल का प्रभाव अन्यों या दूसरों के ऊपर भी पड़ता है । )

 

सूत्रार्थ :- जब योगी मन, वचन व कर्म से सत्य को सिद्ध कर लेता है, तब उसकी वाणी भी सिद्ध हो जाती है । उसके द्वारा कहे गए वचनों का प्रभाव दूसरों पर भी पड़ता है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में सत्य की सिद्धि का फल बताया गया है ।

जब कोई योगी साधक सत्य का पूरे मन, वचन व कर्म से पालन करता है । तब उसकी वाणी भी सिद्ध हो जाती है ।

उसके द्वारा कहे गए वचन हमेशा सच होते हैं । जब वह किसी को कहता है कि तुम “धार्मिक हो जाओ” तो वह व्यक्ति धार्मिक हो जाता है । यदि वह किसी को कहता है कि तुम “स्वर्ग को प्राप्त करो” तो वह व्यक्ति वास्तव में स्वर्ग के सुख को प्राप्त करता है ।

 

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह सम्भव है ? क्या मात्र सत्य के सिद्ध होने से इतनी बड़ी सिद्धि प्राप्त हो सकती है ? क्या उसके कहने से लोग धार्मिक या स्वर्ग के सुख को भोग सकते हैं ?

इन सभी प्रश्नो का उत्तर हाँ ही है । इसके लिए पहले यह जान लेना आवश्यक है कि सत्य को धारण करने वाला व्यक्ति सामान्य नहीं होता है । कोई भी व्यक्ति सत्य का आचरण करता है तो वह सबको एक समान भाव से देखता है । वह किसी के साथ भी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता है ।

इस अवस्था में आने के बाद योगी का अपनी वाणी पर पूरी तरह से नियंत्रण होता है । वह  किसी भी प्रकार की अनावश्यक वार्तालाप नहीं करता है । वह सदैव उसी बात को कहता है जो उसे सत्य दिखाई देती है । वह उन्हीं व्यक्तियों को धार्मिक होने व स्वर्ग के सुख को प्राप्त करने की बात कहता है जो उसे पूरा कर सकते हैं । योगी को इतना आभास पहले से ही हो जाता है कि वह व्यक्तियों की पहचान अच्छी तरह से कर लेता है ।

 

आप देखेंगे कि प्राचीन काल में ऋषियों द्वारा दिए गए वरदान ( आशीर्वाद ) और शाप कभी भी निष्फल नहीं होते थे । वह इसी लिए सफल होते थे क्योंकि ऋषि – मुनि अच्छी तरह से सोच – विचार करने के बाद ही कोई वरदान या शाप देते थे ।

यह सब उनकी तपस्या का ही परिणाम होता है कि दूसरों के लिए कही गई उनकी वाणी पूर्ण होती है ।

 

उदाहरण स्वरूप :- प्राचीन समय में हमारे देश के गुरुकुलों में जब विद्यार्थी विद्या अध्ययन के लिए आते थे । तब वह पूरे समय अपने आचार्यों के सानिध्य में रहते थे । जब वर्षों तक कोई सत्य सिद्ध आचार्य बच्चों का अवलोकन करता था । तो वह उसके विषय में जो भी भविष्यवाणी करता था वह पूरी होती थी । क्योंकि आचार्य उसके सभी क्रियाकलापों पर पूरा ध्यान रखता था । उसके बाद ही आचार्य उसके सम्बन्ध में कोई बात कहता था । और वह पूरी तरह से पूर्ण भी होती थी ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर वण॔न! सत्य सव॔त्र विजयते !धन्यवाद! ?

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