अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्याग: ।। 35 ।।
शब्दार्थ :- अहिंसा- प्रतिष्ठायां ( हिंसा के भाव से पूरी तरह से मुक्त होने पर अर्थात अहिंसा के सिद्ध होने पर ) तत् – सन्निधौ ( उसके निकट या पास रहने वालों का ) वैरत्याग: ( आपस में वैरभाव समाप्त हो जाता है । )
सूत्रार्थ :- अहिंसा के सिद्ध होने पर उस योगी के निकट अथवा पास रहने वाले सभी प्राणियों या जीव -जन्तुओं का आपसी वैरभाव खत्म हो जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में अहिंसा की सिद्धि का फल बताया गया है ।
जो साधक पूरे मन, वचन व कर्म से अहिंसा का पालन करता है । उसी साधक को अहिंसा में सिद्धि प्राप्त होती है ।
अर्थात किसी भी प्राणी के प्रति हिंसा करने का मन में विचार भी नहीं आना मानसिक अहिंसा होती है ।
इसी प्रकार किसी भी प्राणी के प्रति हिंसा के वचन मुँह पर न आना वाचिक अहिंसा कहलाती है ।
और किसी भी प्राणी पर शारीरिक रूप से हिंसा न करना अहिंसा का प्रयोगात्मक रूप होता है ।
इस प्रकार जब अहिंसा का पालन कोई भी व्यक्ति करता है, तो उसके आसपास अहिंसा का एक ऐसा वातावरण बन जाता है । जिसके प्रभाव से हिंसक मनुष्य व हिंसक पशु- पक्षी भी अपनी हिंसा छोड़ देते हैं ।
अर्थात उसके आसपास के सभी प्राणी हिंसा का त्याग कर देते हैं । यह अहिंसा के पालन का फल है ।
उदाहरण स्वरूप :- आप सभी ने ऋषि- मुनियों के आश्रमों के विषय में अवश्य ही सुना होगा कि उनके आश्रम के निकट सभी प्राणी एक – दूसरे के प्रति वैरभाव का त्याग कर देते थे । बहुत सी ऐसी घटनाएं हैं, जिनमें बताया गया है कि ऋषियों के आश्रम के निकट शेर व हिरण एक ही घाट पर एक साथ पानी पीते थे ।
यह और कुछ नहीं बल्कि उन ऋषियों की अहिंसा की सिद्धि का ही फल था ।
अतः अहिंसा के पालन से साधक का सभी प्राणियों के प्रति व सभी प्राणियों का साधक के प्रति वैरभाव छूट जाता है । यह अहिंसा की सिद्धि का फल है ।
Thanku sir??
?प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर वण॔न !आपका बहुत धन्यवाद श्रीमान जी! ?
प्रणाम गुरुजी। बहुत बहुत धन्यवाद
Parnam guru ji
Pranaam Sir! Bahut hi Sundar vichar hai……most of our troubles will vanish if we try to imbibe this quality
When a person obey ahinsa,s rule then he spend a peaceful life guru ji.
Thank you sir