वितर्का हिंसादय: कृतकारितानुमोदिता लोभक्रोधमोहपूर्वका मृदुमध्याधिमात्रा दुःखाज्ञानानन्तफला इति प्रतिपक्षभावनम् ।। 34 ।।

  

शब्दार्थ :- हिंसादय: ( हिंसा आदि विचार ) वितर्का ( ही विरोधी विचार होते हैं ) कृत ( स्वयं किये हुए ) कारित ( दुसरों से करवाए हुए ) अनुमोदिता: ( दूसरों की हिंसा का समर्थन करने वाले ) लोभ ( लालच ) क्रोध ( गुस्से का भाव ) मोह, ( आसक्ति ) पूर्वका: ( के कारण से ) मृदु ( कम या छोटा ) मध्य ( बीच का ) अधि ( अधिक ) मात्रा ( भेद वाले ) दुःख ( अत्यधिक कष्ट या तकलीफ ) अज्ञान ( गलत ज्ञान या जानकारी ) अनन्तफला: ( जीवन पर्यन्त या जीवन भर ऐसा फल या परिणाम देने वाले होते हैं । ) इति ( इस प्रकार ) प्रतिपक्षभावनम् ( विपरीत विचारों को सोचना चाहिए । )

 

सूत्रार्थ :- यम और नियम के विरोधी हिंसा, असत्य व चोरी आदि विचार वितर्क कहलाते हैं । इनके तीन प्रकार बताए हैं- 1. स्वयं किए गए, 2. दूसरों से करवाए गए व 3. दूसरों द्वारा किए हुओं का समर्थन करने वाले । इनके कारण भी तीन हैं- 1. लोभ या लालच में किए गए, 2. क्रोध या गुस्से में किए गए व 3. मोह अर्थात आसक्ति में किए गए । आगे इनके भी तीन प्रकार बताए गए हैं- 1. कम, 2. बीच के व 3. अधिक मात्रा वाले । यह सभी हमें कष्ट या तकलीफ देने वाले होते हैं । इस प्रकार के विपरीत विचारों का चिन्तन करना चाहिए ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में सभी वितर्कों के विरोधी विचारों को अपनाने की बात कही गई है ।

सबसे पहले हम यहाँ पर वितर्कों का ही वर्णन करते हैं । यम, नियम के विरोधी विचारों जैसे कि हिंसा, असत्य व चोरी आदि को वितर्क कहा जाता है ।

यह मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं ।

  1. कृत :- स्वयं अर्थात खुद के द्वारा किए गए वितर्क जैसे- किसी भी प्राणी को स्वयं पीड़ा या कष्ट पहुँचाना, झूठ बोलना, चोरी करना, ब्रह्मचर्य को भंग करना, अनावश्यक विचारों का संग्रह करना, अशुद्धि रखना, असन्तोष रखना, द्वन्द्वों को न सहना, अच्छे ग्रन्थों का अध्ययन न करना व ईश्वर में विश्वास न रखना । यह सभी कृत वितर्क कहलाते हैं ।

 

  1. कारित :- जो दूसरों को प्रेरित करके करवाए गए वितर्क हैं । उन्हें कारित कहा जाता है । जैसे- दूसरों को हिंसा के लिए प्रेरित करना, झूठ के लिए प्रेरित करना, चोरी के लिए प्रेरित करना, ब्रह्मचर्य को भंग करने के लिए प्रेरित करना, अनावश्यक विचारों को संग्रह करने के लिए प्रेरित करना, अशुद्धि के लिए प्रेरित करना, असन्तोष के लिए प्रेरित करना, द्वन्द्व न सहने के लिए प्रेरित करना, बुरा ज्ञान प्रदान करने वाली पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करना व दूसरों को ईश्वर में विश्वास न रखने के लिए प्रेरित करना । यह कारित वितर्क कहलाते हैं ।

 

  1. अनुमोदित :- दूसरों द्वारा किए गए वितर्कों का समर्थन करना अनुमोदित कहलाता है । जैसे- दूसरों द्वारा की गई हिंसा को सही बताकर उसका समर्थन करना, झूठ का समर्थन करना, चोरी का समर्थन करना, कामुकता का समर्थन करना, अनावश्यक विचारों का समर्थन करना, अशुद्धि का समर्थन करना, असन्तोष का समर्थन करना, उतावलेपन का समर्थन करना, बुरी पुस्तकों का समर्थन करना व नास्तिकता का समर्थन करना । यह सब अनुमोदित वितर्क कहलाते हैं । अर्थात जो दूसरों द्वारा किए गए हैं । जिनका हमनें समर्थन किया है ।

 

अब इन तीन प्रकार के वितर्कों के तीन कारण हैं । जिनकी वजह से यह किए जाते हैं – 1. लोभ, 2. क्रोध व 3. मोह ।

 

  1. लोभ द्वारा :- कुछ वितर्क व्यक्ति लोभ अर्थात लालच के द्वारा वशीभूत होकर करता है । उनके इस वितर्क का कारण लोभ है । वितर्कों के तीन प्रकार होने के कारण यह लोभ कारण के भी तीन भेद होते हैं- 1. लोभ द्वारा कृत अर्थात लोभ या लालच से स्वयं द्वारा किए गए वितर्क ।
  2. लोभ द्वारा कारित अर्थात लालच के वशीभूत होकर दूसरों को प्रेरित करके करवाए गए वितर्क व 3. लोभ के कारण दूसरों द्वारा किए हुए वितर्कों का समर्थन करना ।

 

  1. क्रोध द्वारा :- क्रोध अर्थात गुस्से के वशीभूत होकर किए जाने वाले वितर्क । उनके इन वितर्कों का कारण क्रोध होता है । वितर्कों के तीन प्रकार होने से क्रोध कारण के भी तीन भाग किए जाते हैं – 1. क्रोध के वशीभूत होकर स्वयं किए गए वितर्क । 2. क्रोध द्वारा दूसरों को प्रेरित करके करवाए गए वितर्क व 3. क्रोध के कारण दूसरों द्वारा किए गए वितर्कों को सही ठहराना ।

 

  1. मोह द्वारा :- कुछ वितर्क व्यक्ति मोह अर्थात आसक्ति के द्वारा वशीभूत होकर करता है । उनके इस वितर्क का कारण मोह है । वितर्कों के तीन प्रकार होने के कारण इस मोह कारण के भी तीन भेद होते हैं- 1. मोह द्वारा कृत अर्थात आसक्ति के वशीभूत होकर स्वयं द्वारा किए गए वितर्क ।
  2. मोह द्वारा कारित अर्थात आसक्ति के वशीभूत होकर दूसरों को प्रेरित करके करवाए गए वितर्क व 3. मोह के कारण दूसरों द्वारा किए हुए वितर्कों का समर्थन करना ।

 

पहले वितर्कों के तीन भेद कृत, कारित व अनुमोदित हुए और उसके बाद उनके तीन कारण लोभ, क्रोध व मोह होने से इसके 3×3 = 9 प्रकार हुए ।

 

इनमें भी मात्रा के अनुसार इनके तीन प्रकार के भेद किए गए हैं- 1. मृदु अर्थात कम मात्रा वाले, 2. मध्य अर्थात बीच की मात्रा वाले व 3. अधिमात्र अर्थात अधिक मात्रा वाले ।

 

इस प्रकार यह 9×3 = 27 प्रकार के हुए ।

 

अब पुनः इन सत्ताईस (27) प्रकारों के भी तीन – तीन भेद ( मृदु, मध्य व अधिमात्र ) होते हैं । सभी भेदों के मिलने से यह 27×3 = 81 प्रकार के हिंसा आदि वितर्कों के प्रकार होते हैं ।

आगे हिंसा आदि वितर्कों के तीन अन्य प्रकार भी होते हैं –

  1. नियम :- अर्थात एक प्रकार के ही प्राणी के साथ हिंसा, असत्य व चोरी आदि करने का नियम होना ।
  2. विकल्प :- अर्थात दो प्राणियों में से एक के साथ हिंसा आदि वितर्क करना ।
  3. समुच्चय :- अर्थात जो भी प्राणी मिले उसी के साथ हिंसा आदि वितर्क अपनाना ।

इस प्रकार असंख्य प्राणी होने के कारण हिंसा, झूठ, चोरी, कामुकता, अनावश्यक विचार, अशुद्धि, असन्तोष, उतावलेपन, बुरे अध्ययन व नास्तिकता के भी असंख्य प्रकार हो जाते हैं ।

 

ऊपर वर्णित सभी वितर्कों में साधक को इनके विपरीत विचारों का चिन्तन करना चाहिए, कि यह सभी वितर्क मेरी साधना में बाधक हैं । यह सभी दुःखों का कारण हैं । इनसे अनेकों रोग व कष्ट मिलते हैं । यह सभी मुझे अन्धकार में ले जाने वाले हैं । इनका मुझे पूरी तरह से त्याग करना है । इस प्रकार के विपरीत विचारों का चिन्तन करते हुए साधक इन सभी वितर्कों से बच सकता है ।

इस विचार को आत्मसात करने के बाद साधक को हिंसा आदि वितर्क नहीं सताते हैं । और उसे यम, नियम आदि के पालन करने से उनके उत्तम फल की प्राप्ति होती है । जिनका वर्णन आगे के सूत्रों में किया जाएगा ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी!you really have great skill and patience to make us able to understand the difficult and confusing one.thank you Acharya ji ! for such a clear concept explanations.?

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