वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम् ।। 33 ।।

  

शब्दार्थ :- विर्तक ( विपरीत विचारों से ) बाधने ( बाधा उत्पन्न होने पर ) प्रतिपक्ष ( विरोधी या विरुद्ध विचारों का ) भावनम् ( चिन्तन करना )

 

सूत्रार्थ :- यम- नियमों का पालन करते हुए साधक को जब विपरीत विचार सताने लगें । तो साधक को उन सभी विपरीत विचारों के विरुद्ध या विरोधी विचारों का चिन्तन करना चाहिए ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में विपरीत विचारों के भी विरोध का उपाय बताया गया है ।

जब योगी साधक यम – नियमों का पालन करता हुआ योग मार्ग पर अग्रसर होता है, तो बहुत बार उसके सामने ऐसी बाधाएं या विघ्न आते हैं । जिनसे उसको साधना में हानि होती है ।

 

जैसे- कई बार किसी से बदला लेने की इच्छा होना, अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने की भावना होना, किसी की सुन्दर वस्तु को हड़पने का विचार आना, कामुकता को देखकर वासना का प्रबल हो जाना, अनावश्यक व हानिकारक विचारों को संग्रहित करने की इच्छा होना, शरीर के मलों को जानते हुए भी उनके प्रति आसक्ति होना, ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने की इच्छा होना, जीत में इतराना व हार से दुःखी होने की भावना का होना, बुरी पुस्तकों को पढ़ने का मन करना व अपने आप को ही सबकुछ समझना अर्थात अहंकार का भाव जागृत होना आदि विरोधी विचार होते हैं । जो साधना में बाधा पहुँचाते हैं ।

 

जब इस तरह के विरोधी विचार साधना में आने लगें, तो साधक को उन सभी बाधक विचारों के विरोधी विचारों का चिन्तन करना चाहिए । जैसे- हिंसा का भाव आते ही दया के विचार को प्रबल करना ।

 

उस समय पर साधक को सोचना चाहिए कि मैं इन सभी बुरे कर्मों और विचारों से बचने के लिए ही योग साधना की शरण में आया था । और आज फिर मैं पुनः इन्ही विचारों की तरफ क्यों जा रहा हूँ ? ऐसा करने से तो मेरी वही अवस्था हो जाएगी जैसे एक कुत्ते की होती है । आपने देखा होगा कि कई बार कुत्ता अपने ही खाएं हुए खाने की उल्टी कर देता है । और फिर उसे ही वापिस खाने लगता है । जिस प्रकार यह सब देखने में बहुत बुरा लगता है । उसी प्रकार एक साधक को भी यही विचार करना चाहिए कि जिन बुरे कर्मों को मैं त्याग ( छोड़ ) चुका हूँ । उन्ही को वापिस अपनाने से क्या फायदा होगा ? यह तो बहुत ही बुरा होगा आदि । अतः यह मेरे लिए त्याज्य ( छोड़ने योग्य ) ही रहेंगें । इस प्रकार की भावना करते हुए हमें साधना विरोधी विचारों से बचाव करना चाहिए ।

 

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  1. ॐ गुरुदेव*
    बहुत ही सुन्दर विचार कि चित्त में गलत विचारों ( जो हमारे चित्त को योगमार्ग में जाने से रोकते हैं )ऐसे विचारों के आने पर हमें अच्छे विचारों का चिंतन करना चाहिए।
    जैसे:_ काम भावना उत्पन्न होने पर ईश्वर चिंतन व सदग्रंथों का
    मनन करना।
    क्रोध आने पर शांत रहना।
    लालच आने पर दान देना।
    राग होने पर विराग की भावना उत्पन्न करना।आदि।

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