अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमा: ।। 30 ।।

 

शब्दार्थ :- अहिंसा ( किसी भी प्राणी को पीड़ा न पहुँचाना ) सत्य ( जो जैसा हो उसे वैसा ही कहना ) अस्तेय ( चोरी न करना ) ब्रह्मचर्य ( मोक्षकारक ग्रन्थों का अध्ययन व गुप्तेन्द्रियों का संयम ) अपरिग्रह ( अनावश्यक पदार्थों का संग्रह न करना )

 

सूत्रार्थ :- किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार की पीड़ा न पहुँचाना, जो जैसा लगे उसे वैसा ही बताना, किसी दूसरे की वस्तु को बिना पूछें न लेना, मोक्ष कारक ग्रन्थों का अध्ययन व  अपनी गुप्तेन्द्रियों पर संयम रखना व अनावश्यक वस्तुओं व पदार्थों का संग्रह न करना । ये पाँच यम के प्रकार कहे गए हैं ।

  

व्याख्या :- इस सूत्र में यम के पाँच प्रकारों का वर्णन किया गया है । जो इस प्रकार हैं –

 

  1. अहिंसा :- किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार की पीड़ा या तकलीफ न पहुँचाना अहिंसा कहलाती है । अर्थात सबके प्रति वैरभाव का त्याग करके सबके साथ पेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए ।

 

  1. सत्य :- किसी के विषय में जैसा देखा, जैसा अनुमान लगाया व जैसा सुना हो, उसे वैसा ही वाणी से कह देना सत्य कहलाता है । अर्थात जो वस्तु या पदार्थ जैसा हो उसे ठीक वैसा ही मन में सोचना और ठीक वैसा ही अपने मुहँ से कहना सत्य होता है । उसमें अपनी तरफ से किसी भी प्रकार की बात को बिना घटाएं व बढ़ाएं कहना ही सत्य कहलाता है ।

 

  1. अस्तेय :- अस्तेय का अर्थ है किसी भी वस्तु या पदार्थ को बिना उसके मालिक से पूछें ग्रहण ( लेना ) न करना । अर्थात किसी भी प्राणी की किसी भी वस्तु को अवैध रूप से प्राप्त करने की कोशिश न करना अस्तेय कहलाता है ।

 

  1. ब्रह्मचर्य :- वेद शास्त्रों को पढ़ना, ईश्वर की उपासना करना व अपने वीर्य की रक्षा करना बह्मचर्य कहलाता है ।

 

  1. अपरिग्रह :- किसी भी प्रकार की अनावश्यक वस्तु का संग्रह न करना अपरिग्रह कहलाता है । अर्थात किसी भी बिना जरूरत की वस्तु को अपने पास इकट्ठा न करना अपरिग्रह होता है ।

 

इस प्रकार यह पाँच प्रकार के यम बताएं गए हैं । जिनका विस्तृत वर्णन आगे के सूत्रों में किया जाएगा ।

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  1. ॐ गुरुदेव* यम का बहुत ही अच्छा वर्णन किया है आपने।
    इसके लिए आपको बहुत _बहुत आभार ।

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