अविद्याऽस्मितारागद्वेषाभिनिवेशा: पञ्च कलेशा: ।। 3 ।।
शब्दार्थ :- अविद्या, ( सुख को दुःख और दुःख को सुख समझना ) अस्मिता, ( कर्ता व कर्म को एक ही मानना ) राग, ( अत्यधिक आसक्ति अथवा प्रेम ) द्वेष, ( अत्यधिक कटुता या नफरत ) अभिनिवेश, ( मृत्यु का भय मानना यह ) पंच, ( पाँच ) कलेशा:, ( क्लेश अर्थात दुःख या कष्ट हैं । )
सूत्रार्थ :- सत्य ज्ञान को असत्य और असत्य रूपी अज्ञान को सत्य मानना, कर्ता व कर्म को एक ही मानना, किसी से अत्यधिक आसक्ति अर्थात प्रेम होना, किसी से अत्यधिक कटुता या नफरत करना व मृत्यु के भय से भयभीत होना । यह पाँच प्रकार के क्लेश अथवा कष्ट होते हैं जो दुःख उत्पन्न करते हैं ।
व्याख्या :- इस सूत्र में पाँच प्रकार के कलेशों का वर्णन किया गया है । यह क्लेश ही हमारे जीवन में दुःखों को आमंत्रित करते हैं । अतः समाधि या मोक्ष प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को इन कलेशों से मुक्ति पाना अति आवश्यक है । इन कलेशों का विस्तार से वर्णन अगले सूत्रों में किया जाएगा । यहाँ पर इनका संक्षिप्त परिचय कर लेते हैं ।
मुख्य रूप से क्लेश का अर्थ है विपर्यय अर्थात विपरीत या मिथ्याज्ञान ( झूठा ज्ञान ) । जिस साधन से हम सही जानकारी को गलत व गलत को सही समझते हैं वह विपरीत ज्ञान क्लेश कहलाते हैं ।
इनकी संख्या पाँच बताई है –
- अविद्या
- अस्मिता
- राग
- द्वेष
- अभिनिवेश ।
- अविद्या :- सत्य पदार्थों को असत्य व असत्य पदार्थों को सत्य मानने की गलती करना ही अविद्या नामक क्लेश होता है ।
यह अविद्या ही बाकी के सभी कलेशों की जननी अर्थात उनको जन्म देने या उनको पोषित करने वाली होती है ।
- अस्मिता :- दृक व दर्शन शक्ति को एक ही मानने की भूल करना अर्थात कर्ता व कर्म को एक ही मानना । अस्मिता नामक क्लेश होता है ।
- राग :- किसी भी पदार्थ या व्यक्ति विशेष के प्रति आसक्ति या प्रेम होना राग नामक क्लेश होता है ।
- द्वेष :- किसी के प्रति अत्यधिक कटुता या नफरत रखना द्वेष नामक क्लेश होता है ।
- अभिनिवेश :- जब किसी भी व्यक्ति को अपनी मृत्यु का भय सताने लगी या वह अपनी मृत्यु से भयभीत हो जाना अभिनिवेश नामक क्लेश होता है ।
यह सभी क्लेश हमारे जीवन में दुःखों को उत्पन्न करते हैं । क्योंकि विपरीत या झूठा ज्ञान हमेशा कष्ट ही देता है । अतः इन सभी कलेशों से साधक को दूर होने का निरन्तर प्रयास करना चाहिए ।