यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि ।। 29 ।।

 

शब्दार्थ :- यम ( अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह ) नियम ( शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान ) आसन ( शरीर की स्थिर व सुखपूर्ण अवस्था ) प्राणायाम ( श्वास व प्रश्वास की गति पर नियंत्रण ) प्रत्याहार ( इन्द्रियों पर नियंत्रण ) धारणा ( चित्त की स्थिरता ) ध्यान ( चित्त की एकाग्रता ) समाधय: ( कैवल्य अथवा मुक्ति की अवस्था ) अष्टौ ( आठ ) अङ्गानि ( अंग हैं ।)

 

सूत्रार्थ :- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि – ये योग के आठ अंग हैं ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र से योगसूत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण साधना मार्ग अर्थात अष्टांग योग का वर्णन किया जा रहा है । अष्टांग योग को योगसूत्र का सबसे बड़ा व प्रमाणिक योग साधना मार्ग माना गया है । जिसका वर्णन इस प्रकार है –

 

  1. यम :- अष्टांग योग के सबसे पहले अंग के रूप में यम का वर्णन किया गया है । यम के पांच भाग होते हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह ।

 

  1. नियम :- अष्टांग योग का दूसरा अंग नियम है । इसके भी पाँच भाग हैं – शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान ।

 

  1. आसन :- आसन को तीसरे स्थान पर रखा गया है । आसन हमारे शरीर की स्थिर व सुखपूर्ण अवस्था को कहा गया है ।

 

  1. प्राणायाम :- चौथे स्थान पर प्राणायाम का वर्णन मिलता है । श्वास व प्रश्वास की गति पर नियंत्रण करना ही प्राणायाम है ।

 

  1. प्रत्याहार :- पाँचवें स्थान पर प्रत्याहार को कहा है । प्रत्याहार का अर्थ है अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण होना ।

 

  1. धारणा :- छटे स्थान पर धारणा का वर्णन किया गया है । धारणा का अर्थ है अपने चित्त को एक ही स्थान पर बांधना ।

 

  1. ध्यान :- अष्टांग योग का सातवां अंग ध्यान है । धारणा किये गए स्थान पर एकतानता बनी रहने को ध्यान कहते हैं ।

 

  1. समाधि :- समाधि अष्टांग योग का अन्तिम व आठवां अंग है । समाधि कैवल्य अर्थात मोक्ष की अवस्था को कहा गया है । जहाँ पर आत्मा सभी बन्धनों से मुक्त होकर परमानन्द की स्थिति में चली जाती है ।

 

इस प्रकार यह योग के आठ अंगों का संक्षिप्त परिचय कराया गया है । आगे इन सबका अलग – अलग वर्णन विस्तार पूर्वक किया जाएगा ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    योगांगों का संक्षिप्त परिचय प्रदान करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार।

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