तस्य सप्तधा प्रान्तभूमि: प्रज्ञा ।। 27 ।।

  

शब्दार्थ :- तस्य, ( उसकी ) सप्तधा ( सात प्रकार की ) प्रान्तभूमि: ( अन्तिम अवस्था वाली ) प्रज्ञा ( बुद्धि होती है । )

 

सूत्रार्थ :- उस विवेकख्याति को प्राप्त योगी की सात प्रकार की सबसे उत्कृष्ट अर्थात ऊँची बुद्धि होती है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में योगी की सात प्रकार की उच्च अवस्था वाली बुद्धि का वर्णन किया गया है ।

जब योगी विवेकज्ञान द्वारा विवेकख्याति को प्राप्त कर लेता है । तब उसके अन्दर सात प्रकार की उत्कृष्ट ( सबसे ऊँची ) अवस्था वाली बुद्धि उत्पन्न होती है । जिसका वर्णन इस प्रकार है –

 

  1. जब योगी यह अच्छी तरह से समझ लेता है कि जो भी कुछ मुझे जानना था । मैं वो जान चुका हूँ । अब और कुछ जानने लायक नहीं बचा है । यह पहली अनुभूति अर्थात अवस्था होती है ।

 

  1. जिसका मुझे अभाव अर्थात जिसको दूर करना था । उसको मैंने दूर कर दिया है । जैसे- पुरूष और प्रकृत्ति के संयोग का अभाव कर देना । यह दूसरी अनुभूति होती है ।

 

  1. मैंने जो प्राप्त करना था । वह मुझे प्राप्त हो चुका । अब और कुछ प्राप्त करने लायक नहीं बचा है । जैसे – आत्म साक्षात्कार द्वारा समाधि की अवस्था को प्राप्त करने के बाद कुछ भी प्राप्त करना बाकी नहीं रहता । यह तीसरी अनुभूति है ।

 

  1. जो कुछ भी करने योग्य था । वह सब भी मैं चुका हूँ । अब ऐसा कुछ नहीं बचा है जो करना बाकी हो । जैसे- विवेकज्ञान को सिद्ध कर लिया । इसके बाद कुछ भी सिद्ध करना बाकी नहीं रहता । यह चौथी अनुभूति है ।

 

  1. बुद्धि के दो प्रयोजन होते हैं एक भोग और दूसरा मोक्ष । यह दोनों ही पूर्ण हो चुके । अब इसका कोई अन्य कार्य शेष नहीं बचा है । यह पाँचवी अनुभूति है ।

 

  1. चित्त के तीन गुण होते हैं- सत्त्व, रज एवं तम । भोग एवं मोक्ष के पूरा होने से यह तीनों गुण भी चित्त के साथ ही विलीन हो चके । अब इनका भी कोई और प्रयोजन नहीं बचा । यह छटी अनुभूति है ।

 

  1. जब आत्मा सभी गुणों से रहित होकर आत्मस्थिति को प्राप्त कर लेती है । तो वह अविचल हो कर अपने स्वरूप में स्थित हो जाती है । यह सातवीं एवं अन्तिम अनुभूति होती है ।

 

इस प्रकार विवेकख्याति के प्राप्त होने पर योगी को ऊपर वर्णित सात प्रकार की उच्च अवस्था वाली बुद्धि हो जाती है ।

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  1. प्रणाम आचार्य जी! This sutra contains the highest standard of wishdom.. for soul consciousness ..the 7th wisdom is extreme of felicity. ..

  2. प्रणाम आचार्य जी! This sutra contains the highest standard of wishdom.. for soul consciousness ..the 7th wisdom is extreme stage of felicity. .dhanyavad Aacharya ji for such a nice explanation. .

  3. ॐ गुरुदेव*
    बहुत ही अच्छी व्याख्या की है आपने।
    विवेक ख्याति के उपरांत प्राप्त सप्त प्रकार की बुद्धि का वर्णन
    अति सुंदर है।

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