विवेकख्यातिरविप्लवा हनोपाय: ।। 26 ।।

 

शब्दार्थ :- अविप्लवा ( दोष रहित और निश्चित ) विवेकख्याति ( प्रकृत्ति व पुरुष के भेद का ज्ञान या विवेक ज्ञान की अवस्था ) हनोपाय: ( दुःख निवृति या मोक्ष का उपाय है । )

 

सूत्रार्थ :- प्रकृत्ति व पुरूष के भेद का निश्चित व दोष रहित ज्ञान अर्थात विवेकज्ञान ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में मोक्ष के उपाय को बताया गया है । जिस ज्ञान के द्वारा हमें यह पता चलता है कि प्रकृत्ति व आत्मा दोनों अलग- अलग हैं । उसे विवेकख्याति कहते हैं । विवेकख्याति वह ज्ञान है जिसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि या मिलावट नहीं होती । यह पूरी तरह से सत्य पर आधारित ज्ञान है ।  जब साधक क्लेशों से पूरी तरह से छूट ( दूर ) जाता है । तब उसका मिथ्याज्ञान ( झूठी या गलत जानकारी  ) दग्धबीज के भाव को प्राप्त हो जाती है ।

 

अर्थात उसका गलत ज्ञान भुने हुए बीज की तरह हो जाता है । जिस प्रकार भुना हुआ बीज कभी भी अंकुरित नहीं हो सकता । ठीक उसी प्रकार क्लेशों के खत्म हो जाने पर गलत ज्ञान भी कभी उत्पन्न नहीं होता है ।

 

यह विवेकज्ञान निर्मल व अखण्ड प्रवाह ( कभी भी खण्डित न होने वाला ) होता है । यह ज्ञान दोष रहित होता है । इस ज्ञान के दोष रहित होने से यह हमेशा ही वास्तविक स्वरूप को दिखाने वाला होता है ।

 

इस प्रकार इस निर्मल, निश्चित, विशुद्ध, व विवेकज्ञान के प्राप्त होने से मिथ्या ज्ञान दूर होता है । जिससे आत्मा का प्रकृत्ति के साथ अज्ञान पर आधारित सम्बन्ध टूट जाता है ।

 

यही दुःख से पूरी तरह छूटने का अर्थात मोक्ष प्राप्ति का उपाय होता है । जिसे हान कहते हैं । यह विवेकख्याति योगी को सीधे मोक्ष के द्वार तक लेकर जाने वाली सीढ़ी है । तभी इसको हान ( मोक्ष ) का उपाय ( समाधान ) बताया है ।

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  1. ॐ गुरुदेव *
    मोक्ष प्राप्ति के उपाय की अति सुन्दर व्याख्या की है आपने ।
    आपको कोटि_ कोटि धन्यवाद।

  2. श्रेष्ठ , उत्कृष्ट , कल्याणकारी ज्ञान की सुंदर व्याख्या सादर अभिनंदन आपको ?️?

  3. Pranaam Sir! ??Moksha is the ultimate reality and this Sutra takes us step closer to it….. Very nice

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