तस्य हेतुरविद्या ।। 24 ।।
शब्दार्थ :- तस्य, ( उसका अर्थात प्रकृत्ति व पुरुष के संयोग का ) हेतु:, ( कारण ) अविद्या, ( वह अविद्या अर्थात मिथ्याज्ञान ही है । )
सूत्रार्थ :- उस प्रकृत्ति व पुरुष के संयोग का कारण वह अविद्या रूपी क्लेश ही है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में अविद्या को प्रकृत्ति और पुरूष के संयोग का कारण माना है । अविद्या का अर्थ है विपरीत या उल्टा ज्ञान अथवा समझ । जब व्यक्ति अनित्य पदार्थों को नित्य, अशुद्ध को शुद्ध, दुःख को सुख तथा अनात्मा को आत्मा मानने लगता है, तो उसे अविद्या कहते हैं ।
यह उल्टा या विपरीत ज्ञान यथार्थ ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होने देता है । और जब तक व्यक्ति को यथार्थ ज्ञान नहीं होता तब तक उसे विवेकख्याति की प्राप्त नहीं हो सकती । विवेकख्याति ही वह साधन है जो अविद्या को दूर करती है और शुद्ध सात्त्विक ज्ञान का उदय करती है ।
यह प्रकृत्ति जड़ पदार्थ है और पुरुष चेतन है । इन दोनों का संयोग तभी होता है जब अविद्या रूपी क्लेश मौजूद होता है । इस अविद्या के अज्ञान से ही पुरूष का प्रकृत्ति से सम्बन्ध बनता है । जिससे पुरूष को सभी विषय- भोग की वस्तुओं में ही अपना स्वरूप दिखाई देने लगता है । इसके कारण वह राग, द्वेष, भय, क्रोध, मोह आदि सभी कारणों से इनको ही अपना स्वभाव मान लेता है । जबकि यह सभी दोष तो क्षणिक होते हैं । लेकिन अविद्या के कारण वह इसे समझ नहीं पाता है ।
इसीलिए अविद्या के कारण वह चेतन पुरुष जड़ प्रकृत्ति के साथ संयोग स्थापित कर लेता है । यह अविद्या के कारण हुआ संयोग वास्तविक नहीं है । जैसे ही पुरुष को यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति होती है वैसे ही यह अविद्या रूपी अन्धकार समाप्त हो जाता है ।
It’s very nice sir thanku sir??
Very good explanation
ॐ गुरुदेव*
इसका तात्पर्य है कि समस्त प्रकार के दु:खों का कारण अविद्या ही है । अति सुन्दर व्याख्या की है आपने।
Dhanyawaad sir ji
?gm
Pranaam Sir! ??all problems are due to this….. So we’ll said
Uneducation is caused of all disturbance in our life.
Thanks guru ji
??प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर शब्दो से सभी को वास्तविकता से अवगत कराने के इस शुभ कार्य को बारम्बार प्रणाम गुरु देव जी! ??