विशेषाविशेषलिङ्गमात्रालिङ्गानि गुणपर्वाणि ।। 19 ।।

 

शब्दार्थ :- विशेष, ( स्थूलभूत, ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ व मन ) अविशेष, ( सूक्ष्मभूत या तन्मात्राएँ व अहंकार ) लिङ्गमात्र, ( महत्तत्व या बुद्धि ) अलिङ्ग, ( प्रकृत्ति ) गुण,( गुणों के) पर्वाणि, ( विभाग हैं )

 

सूत्रार्थ :- जो पाँच स्थूलभूत, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ व एक मन, पाँच तन्मात्राएँ और एक अहंकार, एक महत्तत्व या बुद्धि और एक प्रकृत्ति ( सत्त्व, रज, तम ) हैं । यह सभी गुणों की क्रमशः विशेष, अविशेष, लिङ्ग व अलिङ्ग अवस्थाएँ या उनके विभाग हैं ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में दृश्य ( प्रकृत्ति ) का गुणों के आधार पर वर्गीकरण किया है । जिसमें उसके विशेष, अविशेष, लिङ्ग व अलिङ्ग आदि विभाग बनाये गए हैं । जिनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है ।

 

विशेष :- विशेष वह होते हैं जिनकी उत्पत्ति अविशेषों से होती है । अर्थात जो अविशेष पदार्थों से उत्पन्न होते हैं । इनमें कुल सोलह (16) तत्त्व होते हैं । जिसमें पाँच स्थूलभूत, ( आकाश, वायु, अग्नि, जल, व पृथ्वी ) पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, ( कान, त्वचा, आँखें, जिह्वा व नासिका ) पाँच कर्मेन्द्रियाँ, ( वाणी, हाथ, पैर या पांव, गुदाद्वार व मूत्रद्वार ) और एक मन ( एक उभयात्मक इन्द्री ) होता है । यह सभी विशेष कहे जाते हैं । यह सभी तत्त्व दिखाई देने वाले भी होते हैं । इसलिए भी इन्हें विशेष कहा जाता है ।

 

अविशेष :- जो तत्त्व प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते उन्हें अविशेष कहा जाता है । लेकिन इनकी सत्ता होती है । यह महत्तत्व आदि का परिणाम हैं । इसमें कुल छः (6) तत्त्वों को रखा गया है । जिसमें पाँच तन्मात्राएँ ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गन्ध ) व एक अहंकार होता है । यह तन्मात्राएँ स्थूलभूतों का सूक्ष्म रूप हैं ।

 

लिङ्ग :- लिङ्ग प्रकृत्ति का परिणाम है अर्थात यह प्रकृत्ति द्वारा उत्पन्न है । यह ऊपर वर्णित विशेष व अविशेष नामक बाईस (22) तत्त्वों की उत्पत्ति का माध्यम या कारण है । इसकी उत्पत्ति केवल प्रकृत्ति से होने के कारण इसे लिङ्ग कहा है ।

 

अलिङ्ग :- अलिङ्ग का अर्थ है जो अव्यक्त है । जिसका कोई भी उपादान कारण नहीं होता । उसे प्रकृत्ति कहते हैं । यह सत्त्वगुण, रजोगुण व तमोगुण की साम्य अवस्था होती है । इस मूल प्रकृत्ति को ही अलिङ्ग कहा गया है ।

 

इस प्रकार ऊपर वर्णित सभी तत्त्व प्रकृत्ति ( सत्त्व, रज, तम ) के विशेष, अविशेष, लिङ्ग व अलिङ्ग नामक विभाग हैं ।

Related Posts

July 11, 2018

तत: परमा वश्यतेन्द्रियाणाम् ।। 55 ।। शब्दार्थ :- तत: ( उसके बाद अर्थात प्रत्याहार ...

Read More

July 11, 2018

स्वविषयासम्प्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहार: ।। 54 ।। शब्दार्थ :- स्वविषय ( अपने- अपने विषयों ...

Read More

July 11, 2018

तत: क्षीयते प्रकाशावरणम् ।। 52 ।।   शब्दार्थ :- तत: ( उस अर्थात प्राणायाम ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

    1. धन्यवाद sir अतिउत्तम प्रकृति विभाग का वर्णन है जी । महोदय विशेष, अविशेष, लिंग ओर अलिंग यह गुणों के विभाग है क्या जी । कृप्या समाधान करें ।

  1. मेरे विचार में विशेष के अंतर्गत वायु तत्व दृश्यमान नहीं है । अनुभूत योग्य है । आप सहमत हैं अथवा असहमत?

  2. आपका बहुत बहुत आभार गुरुदेव।

  3. Pranaam Sir!?? It’s amazing how easily you explained all the qualities and made them easy to understand

  4. ?Prnam Aacharya ji! All the aspect of the Sutra is very clear and easily understandable because of the specific explanation .thank you so much. !?

  5. धन्यवाद आचार्य जी
    सादर अभिनंदन

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}