प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थां दृश्यम् ।। 18 ।।

 

शब्दार्थ :- प्रकाश, ( सत्त्वगुण ) क्रिया, ( रजोगुण ) स्थिति, ( तमोगुण ) शीलम्, ( स्वभाव ) भूत, ( सूक्ष्म ) इन्द्रिय, ( स्थूल ) आत्मकम्, ( स्वरूप ) भोग, ( जीवन ) अपवर्ग, ( मुक्ति ) अर्थम्, ( अर्थ या प्रयोजन है ) दृश्यम्, ( वह दृश्य अर्थात प्रकृत्ति है । )

 

सूत्रार्थ :- जो सत्त्वगुण, रजोगुण व तमोगुण स्वभाव वाला है । सूक्ष्म और स्थूल जिसका स्वरूप है । भोग भोगना एवं मुक्ति को प्राप्त होना जिसका अर्थ या प्रयोजन होता है । वही दृश्य अर्थात प्रकृत्ति होती है ।

  

व्याख्या :- इस सूत्र में दृश्य  ( प्रकृत्ति ) के स्वरूप को बताया गया है । तीनों गुण अर्थात सत्त्वगुण, रजोगुण व तमोगुण दृश्य ( प्रकृत्ति ) के अंतर्गत आते हैं । मनुष्य इन तीनों गुणों से ही प्रभावित रहता है । जब उसमें सत्त्वगुण की मात्रा बढ़ती है तो वह प्रकाशशील स्वभाव वाला हो जाता है । जैसे ही रजोगुण बढ़ता है वैसे ही वह अत्यन्त क्रियाशील स्वभाव ( चंचल ) वाला हो जाता है । और जब उसमें तमोगुण की मात्रा बढ़ती है तो वह मूढं बुद्धि हो जाता है । यह सभी स्वभाव से जो युक्त है वह दृश्य है ।

 

भूत का अर्थ है जो दिखाई न दे । लेकिन वास्तव में जिसकी सत्ता हो । जैसे- शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गन्ध होते तो हैं । लेकिन दिखाई नहीं देते । ये जो सूक्ष्मभूत होते हैं यह भी प्रकृत्ति के ही अंतर्गत आते हैं । इसलिए यह सूक्ष्म भी दृश्य है । और जो इन्द्रिय अर्थात जो हमारी आँखों से देखे जा सकते हैं, कानों से जिनको सुना जा सकता है । त्वचा से जिसे महसूस किया जा सकता है । वह स्थूल भूत होते हैं । जैसे – आकाश, पृथ्वी, स्पर्श आदि । अतः यह स्थूलभूत भी दृश्य अर्थात प्रकृत्ति का ही स्वरूप हैं ।

 

भोग का अर्थ है हमारा जीवन । हम जीवन में सभी वस्तुओं या सुविधाओं का लाभ उठाते हैं । जैसे जीवन – यापन ( जीने के लिए ) जो- जो कार्य किए जाते हैं । वह सभी भोग कहलाते हैं । और जो अपवर्ग है वह मुक्ति होती है । अर्थात इस दुःखमय जीवन से मुक्त होने का तरीका । यह दोनों ( जीवन व मुक्ति ) दृश्य अर्थात प्रकृत्ति का ही प्रयोजन हैं ।

 

उपर्युक्त वर्णित सभी स्वभाव, स्वरूप व प्रयोजन दृश्य के ही अधीन होते हैं ।

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  1. ॐ गुरुदेव
    प्रकृति के स्वरूप की इतनी सुंदर व्याख्या कर पाना कल्पना से परे है , इतने सरल एवं सारगर्भित शब्दों में प्रकृति के स्वरूप की व्याख्या वास्तव में एक तत्त्व ज्ञानी योगी ही कर सकता है।
    इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।

  2. बहुत बहुत सुन्दर व्याख्या की है डॉ. साहब।

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