हेयं दुःखमनागतम् ।। 16 ।।
शब्दार्थ :- दुःखम्, ( जो दुःख ) अनागतम्, ( अभी तक आया ही नहीं है ) हेयं, ( वही त्यागने योग्य है या उससे ही बचा जा सकता है )
सूत्रार्थ :- जो दुःख हमें अभी तक नहीं मिला है अर्थात भविष्य में आने वाला जो दुःख है उससे ही बचा जा सकता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में आने वाले ( भविष्य के ) दुःख का स्वरूप बताता गया है ।
दुःख भी काल ( समय ) की तरह ही तीन प्रकार का होता है । एक दुःख वह होता है जो बीत चुका है । अर्थात भूतकाल का दुःख । एक दुःख जो अभी वर्तमान समय में चल रहा है जिसे हम भोग रहे हैं । और एक दुःख वह होता है जो भविष्य में आने वाला होता है । इन तीनों में से केवल आने वाले दुःख को ही टाला जा सकता है । किसी अन्य को नहीं । क्योंकि जो दुःख बीत चुका है उसको तो टाला नहीं जा सकता । उसे तो हम भोग चुके हैं । जो दुःख हम अभी भोग रहे हैं उसे भी नहीं टाला जा सकता । क्योंकि उसे हम भोग रहे हैं । अतः जो दुःख अभी तक हमें मिला नहीं है । जिसके मिलने की सम्भावना है । केवल हम उसी आने वाले दुःख से बच सकते हैं । अर्थात उसी दुःख को त्यागा जा सकता है ।
उदाहरण स्वरूप :- इस सूत्र को हम एक उदाहरण के द्वारा और भी अच्छे से समझने का प्रयास करते हैं –
आज व्यक्ति का बीमार होना एक आम बात है । हम जीवन में जिस रोग या बीमारी से पीड़ित हो चुके हैं । उससे हम नहीं बच सकते क्योंकि उस बीमारी को हम भोग चुके हैं । यदि वर्तमान समय में भी हम किसी बीमारी या रोग से पीड़ित है तो उससे भी नहीं बचा जा सकता क्योंकि हम उसे अभी भोग रहे हैं । लेकिन जो बीमारी अभी होने वाली है या जिस रोग के होने की सम्भावना है । उसका बचाव करके हम उससे बच सकते हैं । जैसे- हमें कई बार लगता है कि हमारा गला खराब होने वाला है । तो हम पहले ही गुनगुना पानी पीना शुरू कर देते हैं । और सभी ठण्डी चीजों से दूर रहते हैं । इस प्रकार कुछ सावधानियाँ रखकर हम अपने गले को खराब होने से बचा सकते हैं ।
ठीक इसी प्रकार हम जो दुःख आने वाला है उससे सम्बंधित सावधानियाँ रखकर उससे बच सकते हैं । इसलिए केवल भविष्य में आने वाले दुःख से ही बचा जा सकता है ।
It’s give us inspiration to work on this sutra thanku sir?
I will be secured only our future life with hard work guru ji.
बहुत ही सुन्दर गुरु जी
Pranaam Sir! ??This Sutra tells us “Prevention is better than cure.”
Thanks again sir
Prnam Aacharya ji! This sutra knowledge abstain us from the incoming suffering. .thank you Aacharya ji for giving such Gyan to avoid the trouble of life.
लाजवाब सर जी
दुःख के नाश करने का उपाय ही दुःख के उत्पन्न होने का कारण है- सांख्य दर्शन