ते ह्लादपरितापफला: पुण्यापुण्यहेतुत्वात् ।। 14 ।।

 

शब्दार्थ :- ते, ( वें ) ह्लाद, ( सुख या खुशी ) परिताप, ( दुःख अथवा शोक ) फला, ( परिणाम अर्थात फल देने वाले ) पुण्य, ( अच्छे या पवित्र कर्म ) अपुण्य, ( बुरे या पाप कर्म ) हेतुत्वात्, ( के कारण से उत्पन्न या पैदा होते हैं । )

 

सूत्रार्थ :- वें अर्थात जन्म, आयु व भोग अच्छे व बुरे कर्मों के कारण ही सुख व दुःख को देने वाले होते हैं । अर्थात जिन जन्मों, आयु व भोग का कारण अच्छे कर्म होते हैं वह मनुष्य को सुख प्रदान करते हैं । और जिन जन्मों, आयु व भोग का कारण बुरे कर्म होते हैं उनका परिणाम दुःख प्रदान करने वाला ही होता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में अच्छे व बुरे कर्मों का परिणाम बताया गया है । इससे पहले सूत्र में वर्णित जन्म, आयु व भोग का कुछ न कुछ कारण अवश्य होता है । उन कारणों के आधार पर ही मनुष्य को जन्म, आयु व भोग प्राप्त होते हैं । जिस व्यक्ति के पूर्व जन्म में पुण्य कर्म अर्थात अच्छे कर्म होते हैं । उनको जन्म, आयु व भोग आदि फल सुख प्रदान करने वाले मिलते हैं । यानी उन सभी लोगों का जीवन खुशहाल होता है । उनका जन्म अच्छे परिवार में होता है । उनकी आयु भी अच्छी ( ज्यादा ) होती है । और वह आनन्द को भोग रहे होते हैं । जैसे – कुछ व्यक्ति पद-  प्रतिष्ठा, धन – वैभव के साथ जीवन जीते हैं ।

 

इसके विपरीत जिनके पूर्व जन्म में पाप कर्म अर्थात बुरे कर्म रहे हैं । उनको इस जीवन में जन्म, आयु व भोग भी दुःख प्रदान करने वाले मिलते हैं । जैसे – उनका जन्म बुरे परिवार में होता है । उनकी आयु या तो छोटी होती है या बीमारी वाली होती है । और उनके कारण वह दुःख को ही भोगता रहता है । जैसे- आर्थिक तंगी, शारीरिक विकृति व दूसरों पर आश्रित होकर जीवन जीना ।

 

सुख का कारण पुण्य अर्थात अच्छे कर्म हैं । और दुःख का कारण अपुण्य या पाप कर्म  ( बुरे कर्म ) होते हैं । इसी के आधार पर व्यक्ति को जन्म, आयु व भोग प्राप्त होते हैं ।

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