सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगा: ।। 13 ।।
शब्दार्थ :- मूले- सति, ( मूल अर्थात मुख्य कारण के रहने से ) तद्विपाक:, ( उसका परिणाम या फल ) जाति, ( पुनर्जन्म ) आयुर्भोगा:, ( आयु या उम्र और उनका भोग अर्थात भुगतान होते हैं।)
सूत्रार्थ :- जब तक क्लेशों की विद्यमानता रहेगी अर्थात जब तक क्लेश होंगें । तब तक हमें उनके परिणाम ( फल ) के रूप में पुनर्जन्म, उम्र व उसका भोग मिलता रहेगा ।
व्याख्या :- इस सूत्र में अविद्या आदि कलेशों की विद्यमानता के फल की चर्चा की गई है । जब तक कारण रहेगा तब तक कार्य की सत्ता रहती है । जैसे ही कारण खत्म हुआ वैसे ही कार्य भी खत्म हो जाता है । कोई भी कार्य पहले कारण के रूप में मौजूद रहता है । जैसे – गन्ने में रस रहता है । तिल में तेल रहता है । गन्ने में रस और तिल में तेल उनको दबाने से ही नहीं निकलता । यदि ऐसा होता तो कपड़े या किताब को दबाने से भी रस या तेल निकलता ।
गन्ने में रस व तेल में तिल पहले से मौजूद होने की वजह से क्रमशः रस व तेल निकलता है । अर्थात किसी भी कार्य में कारण पहले से मौजूद होता है ।
ठीक इसी प्रकार इस सूत्र में भी यही समझाने का प्रयास किया गया है कि जब तक कारण रहेगा तब तक कार्य होता रहेगा ।
इसको हम एक अन्य उदाहरण से भी समझ सकते हैं । जैसे जहाँ पर गन्दगी होती है वहाँ पर मक्खी व मच्छरों की भरमार होती है । और जैसे ही हम उस गन्दगी को साफ कर देते हैं वैसे ही वहाँ से मक्खी व मच्छर पूरी तरह से गायब हो जाते हैं । इससे हमें पता चलता है कि मक्खी व मच्छरों का कारण गन्दगी है । यदि गन्दगी होगी तो मक्खी व मच्छर होंगें । और यदि साफ सुथरी जगह होगी तो वह नहीं होंगें ।
इसलिए सूत्र में भी यही कहा गया है कि जब तक मनुष्य में अविद्या आदि कलेशों की विद्यमानता रहेगी, तब तक व्यक्ति को उसके परिणाम स्वरूप पुनर्जन्म, आयु व भोग मिलते ही रहेंगें । अर्थात वह जीवन के चक्र में घूमता ही रहेगा । मुक्त नहीं हो पाएगा । जीवन से मुक्ति प्राप्त करने के लिए तो अविद्या आदि कलेशों को जड़ से खत्म करना पड़ता है । तब कहीं जाकर मुक्ति सम्भव है ।
जैसे एक पुरानी कहावत भी है कि “बोए पेड़ बबूल के तो आम कहा से होए” अर्थात घटिया कर्मों के करने से अच्छे परिणाम कहा से मिलेंगें ? जो जैसे कर्म करता है उसको वैसा ही उसका फल मिलता है । ठीक इसी प्रकार यह कर्माशय ( जो कर्म हम करते हैं ) हमारा वृक्ष है । उसकी जड़ में जब तक अविद्या आदि क्लेशों की मौजूदगी रहेगी तब तक हमें फल के परिणाम स्वरूप जन्म, आयु और भोग ही मिलते रहेंगें ।
अतः यह कलेशों की मूल अर्थात अविद्या ही इन सबका कारण है । इसलिए इन कलेशों को निर्बल करने की आवश्यकता है ।
Thanks sir
Excellent descriptions.
May you serve humanity whole of your life span.
Keep it up sir.
Dr. Kukreja
Pranaam Sir! So truly said
Nice explanation about harmful effect of kalasa s guru ji.
Thanks sir?
?प्रणाम आचार्य जी! इस उत्तम ज्ञान के लिए आपका बहुत धन्यवाद! ?