क्लेशमूल: कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीय: ।। 12 ।।

 

शब्दार्थ :- क्लेशमूल:, ( क्लेशों की उत्पत्ति का कारण अर्थात अविद्या ) कर्माशय:, ( कर्मों के संस्कारों का समुदाय ) दृष्ट, ( जो दिखाई दे रहा है अर्थात वर्तमान व ) अदृष्ट, ( जो दिखाई नहीं दे रहा अर्थात भविष्य के ) जन्मवेदनीय, ( जन्मों में भोगा जाने वाला अर्थात भुगतना पड़ता है । )

 

सूत्रार्थ :- अविद्या आदि क्लेशों की उत्पत्ति के कारणों से जिस प्रकार के संस्कारों का समुदाय अर्थात समूह बनता है । उसको वर्तमान व भविष्य में भुगतना पड़ता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में वर्तमान व भविष्य के जन्म में मिलने वाले फल का कारण कर्मों के समूह को बताया है ।

कर्माशय अर्थात हमारे कर्मों का समूह दो प्रकार का होता है –

  1. दृष्ट जन्म वेदनीय
  2. अदृष्ट जन्म वेदनीय ।

 

  1. दृष्ट जन्म वेदनीय :- ऐसे कर्म जिनका फल हमें इसी जन्म में मिलता है । वह दृष्ट जन्म वेदनीय कर्म कहलाते हैं । इनमें तीव्र वेग ( तेज गति ) वाले कर्म होते हैं । जैसे – तीव्र वेग से तन्त्र – मन्त्र द्वारा ईश्वर, देवता व महऋषियों की उपासना करना या तीव्र गति से किसी के ऊपर हिंसा करना या किसी को दुःख देना आदि । यह वें कर्म है जिनका फल हमें शीघ्रता से मिलता है । और इसी जन्म में मिलता है । इसमें शुभ- अशुभ अर्थात पाप- पुण्य दोनों ही तरह के कर्म होते हैं ।

 

  1. अदृष्ट जन्म वेदनीय :- ऐसे कर्म जिनका फल हमें अगले जन्म में मिलता है । वह अदृष्ट जन्म वेदनीय कर्म कहलाते हैं । जैसे- स्वर्ग व नरक की प्राप्ति करवाने वाले कर्म । जिस प्रकार कर्म के संस्कारों से इस जन्म में दुःख की प्राप्ति होती है वैसे ही अगले जन्मों में भी होती है । यह वह कर्म होते हैं जिनका फल हमें देरी से मिलता है ।

 

जो व्यक्ति शुभ अर्थात अच्छे कर्म करता है उसे अच्छे फल की प्राप्ति होती है । और जो व्यक्ति अशुभ अर्थात बुरे कर्म करता है उसे बुरे फल की प्राप्ति होती है । दोनों ही ( शुभ- अशुभ ) कर्मों का फल इस जन्म व अगले जन्म में मिलता है ।

 

इन सभी कर्मों का फल हमें ईश्वर, देश का राजा या देश का कानून, समाज या फिर हम स्वंम अपने आप को देते हैं ।

ईश्वर हमें हमारे कर्मों के अनुसार अच्छी या बुरी जगह पर जन्म देता है । देश का राजा या देश का कानून हमें बुरे कर्म करने पर जेल की कैद और आर्थिक दण्ड अर्थात जुर्माना लगा देता है । इसी प्रकार अच्छे कर्मों के लिए कोई पदक या आर्थिक सहायता दी जाती है । समाज में भी अच्छे कर्मों के आधार पर ही लोगों का सम्मान किया जाता है । जो दुष्ट व्यक्ति होते हैं समाज उनका सम्मान नहीं करता । और जो व्यक्ति अच्छे कर्म करते हैं समाज उनका पूरा मान- सम्मान करता है ।

या फिर हम स्वंम अपने आप को कर्मों का फल दे लेते हैं । जैसे- अच्छे कर्मों के फल के रूप में हम अपने आप को प्रोत्साहित करते हैं । और बुरे कर्म करने पर हम पश्चाताप व मनोरोग आदि से स्वंम को दंडित करते हैं ।

इस प्रकार सभी अच्छे व बुरे कर्मों का कुछ फल इसी जन्म और कुछ का अगले जन्म में भुगतना पड़ता है ।

 

विशेष :- इससे एक बात तो यह स्पष्ट होती है कि योगदर्शन पुनर्जन्म की अवधारणा को मानता है ।

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